Thursday, April 4, 2024

स्वर्ण भस्म -भाग 4

“स्वर्ण भस्म” भाग -4

स्वर्ण भस्म का आज हम 4th भाग आपसे शेयर करने जा रहे हैं। यह रसायन स्वर्ण भस्म युक्त है। जिसका नाम है। 

“चतुर्मुख रस”

गुण और उपयोग:- 
 स्वर्ण, अभ्रक, कज्जली आदि के योग से बनने वाली यह दवा वातज रोगों के लिये बहुत फायदेमन्द है। 
मूर्च्छा, हिस्टीरिया, मृगी और उन्माद रोग पर इस दवा का अच्छा असर होता है। 
हृदय की बीमारियों को दूर करके हृदय को मजबूत करना इस रसायन का खास गुण है। 
क्षय, खाँसी, अम्लपित्त, पाण्डु और प्रसूत-ज्वर या प्रसूत के बाद होने वाली कमजोरी में इस दवा का प्रयोग करके लाभ उठाना चाहिए। 
यह पौष्टिक और रसायन भी है। इसलिये किसी बीमारी के बाद की कमजोरी या साधारणतया होने वाली कमजोरी में इस दवा से अच्छा लाभ होता है।
क्षय रोग के लिए इस दवा का सेवन आप कर सकते हैं।‌
इस रसायन का प्रमुख कार्य शारीरिक निर्बलता दूर करके सप्तधातुओं को पुष्ट करके शरीर को हष्ट-पुष्ट बनाना है। 
पाचन , पेट की गड़बड़ी,भूख न लगना, पाचन हमेशा खराब रहना , ज्वर बने रहना ऐसी समस्याएं इस रसायन के सेवन से ठीक होती है। 
बिमारी रहने के कारण रोगी कांतिहीन हो जाता है। उठने बैठने बोलने की शक्ति कम हो जाती है , ऐसे रोगियों के लिए भी यह रसायन वरदान साबित होता है। 
मानसिकत रोग, दिमाग़ी कमजोरी, bipolar disorder, पागलपन आदि के लिए यह रसायन बहुत लाभदायक है। 

घटक:- 
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लौह भस्म और अभ्रक भस्म 4-4 तोला तथा स्वर्ण भस्म 1 तोला ( 10ग्राम) लें। प्रथम पारा-गन्धक की कज्जली बना उसमें अन्य भस्में मिला, घृतकुमारी- रस में घोंटकर गोला बना, धूप में सुखा, एरण्ड-पत्र में लपेट, सूत से बाँध कर, धान की कोठी में तीन दिन तक रहने दें। चौथे दिन उसमें से निकाल कर महीन पीस कर 1-1रत्ती ( 125mg ) की गोली बनाकर सुखाकर रख लें।

मात्रा और अनुपान-1-2  गोली सुबह-शाम त्रिफला घृत 3ग्राम के साथ सेवन करें। ऊपर से दूध पी सकते हैं। 

इस रसायन को दूध , घी, मक्खन, मलाई,अन्य दवाओं के साथ मिलाकर, रोगी और रोग की अवस्था अनुसार वैद्य की सलाह अनुसार ही सेवन करना चाहिए। 

हम यहां आपको आयुर्वेद का ज्ञान वर्धन के लिए लेख लिख रहे हैं। कोई भी दवा चिकित्सक की सलाह से ही इस्तेमाल करें। 

इस रसायन में कज्जली योगवाही और रसायन है। 
लौह और अभ्रक शक्ति वर्धक, धातुओं को पुष्ट करने वाला, सुवर्ण राजयक्षमा, क्षय, टीबी , कमजोरी आदि के लिए सर्वश्रेष्ठ है।‌स्वर्ण जिस भी दवा में नुस्खे में हो उसके ताकत को बहुत बढ़ा देता है। 

किसी भी जटिल पुराने रोग के लिए आप मुफ्त सलाह लें सकते हैं। 
हम देश विदेश में दवा✈️📦 भेजते हैं। 

✍🏻 सदैव आपका अपना शुभचिंतक
वैद्य अमनदीप सिंह चीमा,
अमन आयुर्वेद,
Call & WhatsApp 09915136138

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Wednesday, April 3, 2024

स्वर्ण भस्म -भाग 3

“स्वर्ण भस्म” भाग -3

स्वर्ण भस्म से संबंधित पिछले दो भाग हम लिख चुके हैं। आज तीसरे भाग में हम बात करेंगे, स्वर्ण भस्म से तैयार होने वाले “नवरत्न राज योग” के बारे में। 
पहले जानेंगे घटक , फिर मात्रा अनुपान , फिर गुण उपयोग

इस योग में स्वर्ण भस्म, हीरा भस्म, मोती भस्म, महंगे महंगे रत्न जैसे पन्ना, पुखराज ,नीलम आदि नवरत्न का का मिश्रण है। इसलिए इसका नाम नवरत्न राज योग है । जिसे रस या रसायन भी आप कह सकते हैं। आयुर्वेद में रस का मतलब तरल तो है ही। रस पारद को भी कहा गया है। जिस औषधि में पारद हो , उसके नाम के पीछे भी रस लग जाता है। रसायन औषधियों के नाम के अंत में भी रस लग जाता है। इस रस में भी शुद्ध पारद का इस्तेमाल हुआ है , इसलिए इसके नाम के पीछे रस लिखा है। हम यह दवा बनाते समय पारद के स्थान पर रस सिंदूर का इस्तेमाल करते हैं। 
इस रस में स्वर्ण भस्म, हीरा भस्म , नवरत्न आदि होने की वजह से बहुत महंगा पड़ता है। इसके लाभ देखकर खर्च किया हुआ पैसा भूल जाता है। 

★नवरत्न राज योग★
घटक-
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, स्वर्ण भस्म, रौप्य भस्म, खर्पर भस्म, वैक्रान्त भस्म, कान्त लौह भस्म, बंग भस्म, नाग भस्म, हीरा भस्म, प्रवाल भस्म, विमल भस्म, माणिक्य भस्म, पन्ना भस्म, स्वर्ण माक्षिक भस्म, रौप्यमाक्षिक भस्म, मोती भस्म, पुखराज भस्म, शंख भस्म, वैडूर्य भस्म, ताम्र भस्म, मुक्ताशुक्ति भस्म, शुद्ध हरिताल, अभ्रक भस्म, शुद्ध हिंगुल, शुद्ध मैनशिल, गोमेदर्माण भस्म या पिष्टी, नीलम भस्म- प्रत्येक १-१ भाग या 10-10 ग्राम लेकर प्रथम पारा-गन्धक की कज्जली बनावें, पश्चात् अन्य समस्त भस्मों को मिलाकर गोखरू, पान, कटेरी, गोरखमुण्डी, पीपल, चित्रकभूल छाल, ईख की जड़, गिलोय, हुरहुर, अरणी, मुनका, शतावर, कंकोल, मिर्च, कस्तूरी, नागकेशर - इन सबके क्वाथ से पृथक् पृथक् सात-सात बार भावना देकर दृढ़ मर्दन करें। फिर एक पात्त्र में सेन्धा नमक का चूर्ण भर कर उसमें मृगांक के समान कम-से-कम एक दिन की अग्नि देकर पाक करें, फिर स्वांग- शीतल होने पर औषधि को निकाल कर पूर्वोक्त द्रव्यों के रस या क्वाथ की भावना देकर मर्दन करें। सबसे अंत में इसी के समान शीतल जल के साथ कस्तूरी की भावना देकर मर्दन करें और गोली बनने योग्य होने पर 1-1रत्ती ( 125mg ) की गोली बना, छाया में सुखा कर रख लें।

यह नुस्खा रस रत्नसमुच्य ग्रंथ में है। 

मात्रा और अनुपान:- 
आधी गोली से एक गोली ( 65mg to 125mg ) ,
दूध,मलाई,शहद से , या अन्य औषधि के साथ रोगी और रोग की अवस्था अनुसार, मौसम आदि का विचार करके यह दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

गुण और उपयोग:- 
अनेक बहुमूल्य रत्नों और उपादानों से निर्मित इस रसायन का प्रयोग करने से समस्त प्रकार के शोथ,पाण्डू, बल्ड कैंसर, ल्यूकेमिया, बार बार रक्त चढ़ाने की समस्या, पुराने बुखार, वात व्याधि, मधुमेह, मधुमेह से आई नामर्दी,सभी प्रमेह ठीक होते हैं। 
मृगी, दमा ,फेफड़ों का कैंसर, दिल की कमजोरी में , मानसिक रोग , डर, तनाव , डिप्रेशन आदि , ओज बढ़ाने, शुक्राणु , शीघ्रपतन, बांझपन, सर्व कैंसर , एड्स रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर बोझिल जिंदगी से ऊर्जा भरी जिंदगी प्रदान करके नई खुशियां देती है। 

इस दवा को आप 1वर्ष में 20-30 दिन सेहत तंदरुस्त रखने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। जो लोग अच्छी सेहत चाहते है‌। उनके लिए यह महंगा टानिक ताकतवर साबित तो होता ही है, सभी रोगों से बचाव भी करता है। 

हम इसे गोली नहीं बनाते । पाउडर ही बनाकर रखते हैं। क्योंकि हर मरीज के रोग अनुसार दूसरी दवाओं के साथ मिलाकर दिया जा सके। 

कीमती नवरत्नों हीरे , मोती से स्वर्ण भस्म के मिश्रण से बनी
यह दवा हर बड़ेसे बड़े रोग को ठीक करने की ताकत रखती है। 
रोग और रोगी की समस्या अनुसार, अनुपात, अनुपान हम बदलकर देते हैं। तो आशातीत लाभ मिलता है।

सदैव आपका अपना शुभचिंतक
वैद्य अमनदीप सिंह चीमा,
अमन आयुर्वेद,144205, पंजाब
Call & WhatsApp 09915136138 

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