श्वेत प्रदर ( Leucorrhora )
परिचय,लक्षण,कारण,घरेलु चिकित्सा,अनुभूत चिकित्सा सहित मेरा लेख।
डाँ०अमनदीप सिंह चीमाँ
पंजाब,९९१५१३६१३८
स्रियों में पाया जाने वाला यह आम रोग है । यह ग्रर्भाशय की श्लैष्मिक कला में शोथ उत्पन्न हो जाने के फलस्वरूप हो होता है । जिस प्रकार पुरूषों में जिरयान ( प्रमेह ) की आम शिकायत पाई जाती है उसी प्रकार यह स्त्रियों को हो जाया करता है ।
यह स्वयं में कोई रोग नही है और यही कारण बड़े-2 वैद्य जो इसको स्वतंत्र रोग मानकर पीड़ित स्त्री का इलाज की असफल कोशिश करते है ।
क्योकि यह रोग कई रोगों के लक्षण स्वरूप स्त्री को हुआ करता है । आमतौर पर यह रोग गर्भाशय ,डिम्ब ग्रंन्थियों ,गर्भाशय मुख,गर्भाशय का अपने स्थान से खिसकना,योनि मार्ग का शोथ,भीतरी जननेंद्रियों में फोड़ा -फुंसी या रसूली होना,मूत्राशय शोथ,सुजाक,आतशक,रक्ताल्पता,यकृत सम्बन्धी रोग,वृक्कों के विकार,मधुमेह,अजीर्ण ,कब्ज आदि के लक्षणों के अनुरूप हुआ करता है । जब हर वक्त स्त्री की योनि से लसीला पतला सा स्त्राव आया करता है तो बदबू आने लगती है । यह लाल पीला नीला श्वेत किसी भी रंग का हुआ करता है । यह भी दो प्रकार का होता है ।
पहला स्त्राव योनि से दूसरा ग्रीवा( cervix) से आया करता है । योनि से आने वाला स्त्राव दुधिया या पीला या दही के सामान होता है । ग्रीवा से आने वाला स्त्राव लेसदार श्लेष्मा की भाँति चिपचिपा या पीपयुक्त आया करता है । कभी-2 स्त्राव कम तो कभी-2 इतना कि रोगिणी का पेटीकोट भीगकर तर हो जाया करता है । जिसके कारण कपड़ों पर दाग़ हो जाते है ।
किसी स्त्राव में योनि में खुजली और जलन भी हो जाया करती है । रोगग्रस्त महिला क्षीण व उदास बनी रहती है । हाथ पैरों में जलन ,हडफूटन,और कमर गर्द बना रहता है । किसी-2 रोगिणी का सिर चकराने लगता है । भूख नही लगा करती है,कब्ज बनी रहती है । पाचन शक्ति निर्बल हो जाती है । किसी-2 रूग्ण महिला को मासिकधर्म गड़बड़ी उत्पन्न हो जाया करती है । रोग जब बिगड़ जाया करता है तो पाचन शक्ति बिगड़ जाती है भूख क्षय हो जाने से रूग्ण के चेहरे का रंग पीला और शरीर दुर्बल हो जाता है । कमर और पिन्डलियों मेम दर्द बना रहता है । स्त्री चिड़चिड़ी हो जाती है ।
प्रदर रूक जाने या ज्यादा आने से या तेज दवाएं गर्भाशय में रखने,गर्भाशय का कैंसर, गर्भाशय का अर्श, या डिम्बाशय शोथ,छोटी आयु में विवाह, शारीरिक कमजोरी,जोड़ों का दर्द,जल्दी-जल्दी गर्भ ठहरना,गर्भाशय का टेढ़ा हो जाना आदि कारणों से भी यह रोग हो जाया करता है । इन कारणों के अतिरिक्त थाईराइड ग्लैन्ड,तथा पिच्यूटरी ग्लैन्ड को विकार तथा कुछ विशेष कीटाणुओं के संक्रमणों के कारण भी यह रोग हो जाया करता है ।
यदि यह रोग विशेष प्रकार के कीटाणुओं ( गोनोकोक्स,स्ट्रेप्टाकोक्स,हिमोलिटीक्स,या औरियस,कैनडीड एलबीकेन,ट्राइकोमोनास,हीमोफिल्स,वेजाइनेलिस,एन्टी अमीबा,हिस्टोलिटिका ,थ्रेडवर्म ) इत्यादि के संसर्ग के कारण हो तो पीले रंग का झाग वाला स्त्राव आने लगता है। गर्भाशय के मुख और योनि में चने की दाल के बराबर घाव हो जाते है ,खुजली होती है,मूत्र में कठिनाई पेश आती है।
बाहरी वस्तुए योनि या गर्भाशय में जैसे - लूप ,कापर टी,इत्यादि या रासायनिक द्रव्य ( गर्भ निरोधक द्रव्य,शुक्राणु नाशक द्रव्य ) आदि या अर्बुद जैसे गर्भाशय-अर्श,गर्भाशय कोष के अर्बुद तथा मानसिक विकृतियाँ जैसे-क्रोध ,चिंता ,शोक आदि मानसिक उत्तेजनाएं जिनके फलस्वरूप शरीर के अन्त - स्त्रावी में वृधि होकर गर्भाशय में रक्ताधिक्य के कारण तथा हीण स्वास्थय व पाचन संस्थान की विकृतियों जैसे- अजीर्ण ,मंदाग्नि,कोष्ठ बद्धता,अपथ्य भोजन,विषम आहार,अन्य शारीरिक रोगों - जैसे पाण्डू,क्षय,मधुमेह,आदि में योनि की श्लैष्म कला में ग्लोइकोजन के क्षय से,अनेक जीवाणु के उपसर्ग के कारण,अपरिपक्व व प्रजनन अंगों की उत्तेजना तथा अतृप्त सतत कामवासनाओं के कारण जननेद्रियों में रक्ताभिसरण अधिक होने से तथा किरण चिकित्सा-( x-Ray Therapy) के कारण कुत्रिम आर्तव क्षय होने पर एवं अत्यधिक मात्रा में धूम्रपान,तम्बाकू व मद्यपान सेवल इत्यादि से भी श्वेत प्रदर का रोग हो जाया करता है ।
श्वेत प्रदर वात कफज व्याधि होने से इसमें वात तथा कफ के लक्षणों की वृद्धि हो जाती है और पित्त क्षय के भी लक्षण होते है । इसके साथ ही मैथुन कष्ट (Dyparuenia) योनिकंडू (Pruritis villvae) तथा योनि संकोच (contraction) तथा संक्रमण (infection) का गुदा तक पहुंचना आदि लक्षण भी हो सकते है ।
दवाई
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सबसे पहले मूल कारणों को दूर करें । सामान्य स्वास्थ को उन्नत कीजिएं । शीघ्रपाची लघु पोष्टिक भोजन दीजिए।मानसिक आवेगों यथा -कामवासना,क्रोध,चिन्ता,दु:ख आदि का पूर्ण त्याग करवाएं। जठराग्नि को दीपन,पाचन योगों से प्रदीप्त करें । कोष्ठबद्धता न रहने दें । अत्याधिक मैथुन न करने दें । कुत्रिम बाह्मा वस्तुओं को योनि में धारण न करने दें । दिवास्वप्न,गुरू भोजन,मद्यपान,क्षार,अम्ल,लवणों का अत्याधिक सेवन बंद करवाएं ।
@घरेलु जरूरी चिकित्सा :-
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●त्रिफला क्वाथ से योनि प्रक्षालन ( local wash or Irrigation) शतधौंत घृत का पिचुधारण (Plug and Tampoons) का प्रयोग करवाएं। इससे योनिगत कंडू चिपचिपापन और शिथिलता नष्ट हो जाती है । सुबह-शाम साफ वायु में सैर करायें या हल्का फुल्का व्यायाम करायें ।
@घरेलु चिकित्सा:-
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●जटांमांसी ,बबूल के सूखे पत्ते, फुलाई फिटकरी,अनार के फूल,भांग के पत्ते,कत्था बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें । पतले रेशमी कपड़े में ढ़ीली पोटली बाँधकर योनि में गर्भाशयशके मुख के पास रात को रखवाएं ।सुबह निकलवा दें ।
●अशोक छाल,असगंध,विधारा,पठानी लोध 100-100 ग्राम कपड़छान करके रख लें । 5-5 ग्राम गोदुग्ध से दें ।
● मेरी अनुभूत चिकित्सा:-
गिलोय का सत्व 250 मिग्रा.
पुष्यानुग चूर्ण 2 ग्राम
संशमनी वटी 500 मिग्रा.
चंद्रप्रभा वटी 300 मिग्रा.
बंग भस्म 50 मिग्रा.
प्रवाल भस्म 100 मिग्रा.
प्रदरारि लौह 250 मिग्रा.
मधु मालिनी बसंत 1 गोली ।
अशोकारिष्ट +लोध्रासव 25-25 मिलि.बराबर जल में मिलाकर ।खाने के बाद लें । यह एक मात्रा बताई है ।ऐसी दिन में दो मात्राएं सुबह-शाम दें । 1-1 चम्मच सुपारी पाक दूध से सुबह-शाम दें ।
●गोंद कतीरा ,गोंद ढाक,गोंद कीकर,गोंद सिम्बल 20-20 ग्राम ,इसबगोल भुसी 12 ग्राम,
80 ग्राम गोखरू का चूर्ण मिलाकर रख लें । 4-4 ग्राम सुबह- शाम 3-4 सप्ताह बकरी या गोदुग्ध से लें ।
●सतावर ,असगंध ,अशोक छाल,गोखरू ,सफेद मूसली ,सफेद राल ,रूमी मस्तगी ,प्रत्येक 25-25 ग्राम ,चांदी के वर्क 6 ग्राम ,मिश्री 125 ग्राम।
सबको कूट पीसकर चूरण बनाकर 42 पुडियाँ बना लें । एक-एक पुडियाँ सुबह-शाम 21 दिन तक गोदुग्ध के साथ खाने से श्वेत प्रदर पीडिता का जीवन सुखमयी हो जाता है ।
सदैव आपका अपना
डाँ०ए०एस०चीमाँ, पंजाब
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सर leucorrhoea अगर गर्भावस्था में हो तो उसका क्या इलाज है? या इनमे से कोई भी नुस्खा अपना सकते हैं।
ReplyDeleteLeucorrhoea causes back pain. No matter there is some help in the form of herbal supplement to overcome leucorrhoea. For more info visit http://leukorrheatreatment.com/
ReplyDeleteमेरी वाइफ की कमर का क्या उपचार करें
ReplyDeleteकमर कट रही है क्या उपचार करें
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