“स्वर्ण भस्म” Part-1
परिचय,विधि,लाभ सहित
•परिचय:-
स्वर्ण भस्म तैयार करने के लिए स्वर्ण का विशिष्ट गुरुत्व 19.4 तथा द्रवणांक 1064° शतांश तापमान है। 100 टंच का सोना स्वर्ण भस्म निर्माण के लिए अति उत्तम है।
•शोधन:-
स्वर्ण को भस्म या वर्क बनाने से पहले उसका शोधन बहुत जरूरी है। ताकि उसकी अशुद्धियां दूर करके मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ दिया जा सके।
सुनार के पास जाकर स्वर्ण के पत्र बनवाकर , फिर इसे आग में तपाया जाता है। तपा हुआ स्वर्ण पत्र तैल , तक्र,कांजी,कुल्थी आदि के क्वाथ में 3-3 बार बुझाने से स्वर्ण शुद्ध हो जाता है।
अब इसे भस्म बनाने या वर्क बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
शुद्धि करण की विधियां और भी बहुत सारी है लेकिन यह विधि बहुत सरल और मेरी पसंदीदा है।
•स्वर्ण भस्म बनाने की विधि:- 1
स्वर्ण भस्म एक बार में यानि एक बर्तन में एक तोला से 5 तोला तक ही बनाएं, ऐसा करने से भस्म उत्तम बनती है।
10ग्राम स्वर्ण पत्र को बारीक कैंची की मदद से कतर लें या रेती की मदद से रगड़ कर बारीक कर लें।
फिर इसे तुलसी के पत्तों के रस में खूब खरल करें।
सूखने के बाद बराबर मात्रा में सुमलफार बराबर मात्रा में मिलाकर तुलसी के रस में एक हफ्ता 8 घंटे तक रोज खरल करें।
फिर छोटी-छोटी टिकिया बनाकर सुखाकर, दीवाली वाले मिट्टी के 2 दीयों या सकोरे के बीच रखकर , सन्धि स्थान पर कपड़मिट्टी करके 1किलो कण्डों की आग दें। आग खुले स्थान पर ही दें, धुएं से खुद को और दूसरों को बचाएं।
फिट सम्पुट से टिकिया निकाल कर पुनः आधा भाग सुमलफार मिला कर प्रथम पुट की तरह पुट दें।
तीसरी बार चोथाई भाग सुमलफार मिला कर पुट दें। लगभग 11 पुट देने से आप सकोरे से भस्म निकाल कर तुलसी पत्र रस में 7 दिन खरल करें।
फिर गुलाब फूल के रस में 7 दिन खरल करके स्वर्ण भस्म को संभाल कर रख लें।
स्वर्ण भस्म तैयार है।
•विधि नंबर :-2
शुद्ध करके बारीक किए गए 10ग्राम स्वर्ण पत्रों में 20ग्राम शुद्ध पारद मिलाकर दोनों को खरल में घोलकर पिट्ठी बना लें। इस पिट्ठी को तुलसी पत्र रस में 3 दिन खरल करने के बाद टिकिया बनाकर, धूप में सुखा लें, सराब समपुट में रखकर आधा किलो कंडो की आंच में फूंक दें। इस तरह 10बार करने से काले रंग की स्वर्ण भस्म तैयार मिलेगी, अगर एक दो पुट खुले में दी जाएगी तो लाल रंग की स्वर्ण भस्म तैयार हो जाएगी।
•विधि नंबर :-3
शुद्ध करके बारीक किए हुए 10ग्राम स्वर्ण पत्रों में 10ग्राम शुद्ध पारद , 5ग्राम दुग्ध पाषाण मिलाकर जम्बीरी नींबू के रस में ( गलगल ) तीन दिन तक मर्दन करके जब पूरा मिश्रण सूख जाएं तो इसमें 10 ग्राम शुद्ध गंधक मिलाकर सम्पुट में बंद करके लघुपुट में फूंक दें। इस तरह तब तक पुट देते रहे जब तक चंद्रिका -रहित भस्म न हो जाए । निश्चन्द्र भस्म होने पर इसको कचनार की छाल के स्वरस की भावना देकर तीन पुट दें। इस तरह से बनी हुई भस्म जामुनी रंग की होती है।
स्वर्ण भस्म निर्माण की अनेक विधियां हैं। यह उपरोक्त विधियां रस तंत्रसार,सिद्ध योग संग्रह ग्रंथ से ली गई है। हम अपनी विशेष स्वर्ण निर्माण विधियां भी आपसे शेयर करेंगे।
यह स्वर्ण भस्म निर्माण अनजान व्यक्ति न करें, गुरु की छत्रछाया में ही भस्म निर्माण का कार्य करें।
सोना,चांदी,शीशा धातुओं की भस्म बनाते समय आंच अधिक होने पर तीनों धातुएं गलकर एक गाढ़ा पिण्ड बन जाती है। इसलिए बिना अनुभव के भस्म निर्माण न करें। योग्य गुरु से जरूर सीख लेना चाहिए।
अपने हाथों से तैयार की गई यह स्वर्ण भस्म, कंपनी की स्वर्ण भस्म से 100गुणा अच्छी है। ज्यादा लाभकारी होती है।
कंपनी की स्वर्ण भस्म 15000₹ से 22000₹ तक 1 ग्राम बिकती है। 1ग्राम (1000mg )
मात्रा:- चोथाई रत्ती से आधी रत्ती तक दूध,घी,मधु, मक्खन, मलाई आदि के साथ अथवा रोग अनुसार अनुपान के साथ ।
आठ रत्ती ( 1000mg मतलब 1ग्राम)
एक रत्ती ( 125mg )
आधी रत्ती ( 65mg )
चोथाई रत्ती ( 32.5 mg )
एक महीने में आप रोग अनुसार साधारण मनुष्य के लिए आधा ग्राम से 2-3 ग्राम तक स्वर्ण भस्म का सेवन कर सकते हैं। ग्रंथ अनुसार।
विशेष नोट:-
जो खिलाड़ी हैं , Zym lovers, रोज संभोग चाहते हैं या शौकीन हैं , उनके लिए हम विशेष मात्रा में रोग अनुसार विशेष दवाओं के साथ स्वर्ण भस्म मिलाकर दवा तैयार करके देते हैं। क्योंकि ऐसे व्यक्तियों को ज्यादा पावर चाहिए होती है , इन्हें साधारण मनुष्य से खुराक की भी ज्यादा जरुरत होती है। इसलिए स्वर्ण भस्म मिश्रित दवाएं ऐसे मनुष्यों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होती है। स्वर्ण भस्म की मात्रा हम सैट करते हैं , उम्र, वजन,body की जरूरत अनुसार। स्वर्ण भस्म की मात्रा हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकती है।
गुण और उपयोग:-
स्वर्ण भस्म स्निग्ध, मधुर, किंचित तिक्त,शीत वीर्य और रसायन गुण वाली है।
मधुर,वृंहण,हृद्य,स्वर-शुद्धिकारक, प्रज्ञा, वीर्य, स्मृति,कांति,ओज बढ़ाने वाली है।
एड्स में भी स्वर्ण भस्म का उपयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है।
स्वर्ण भस्म को मस्तिष्क विकार , वात रोग , हृदय विकार, मसल डिस्ट्राफी, सोरेबर्ल पल्सी, कैंसर, दृष्टि क्षीणता, पागलपन, डिप्रेशन, रसोली, ब्लड कैंसर, रोग प्रतिरोधक क्षमता, मधुमेह,दमा,राजयक्ष्मा,खिलाड़ी,Zym lovers, हार्ट ब्लाकेज, पक्षाघात, सैक्स कमजोरी, बांझपन, नामर्दी, शुक्राणु, शीघ्रपतन, लाइलाज रोग , पुराने जटिल रोगों में रोगानुसार अनुपान के साथ हम इस्तेमाल करते हैं।
बहुत कम मात्रा में ही (चोथाई रत्ती से आधी रत्ती) स्वर्ण भस्म का सेवन करने से बहुत तेजी से अधिक लाभ मिलता है।
कई वर्षों तक सैकड़ों दवा खाने के बाद भी जो रोग ठीक न हुआ हो , स्वर्ण घटित औषधियों से अच्छे होते हैं।
अतिअंत कष्टदायक अवस्था में स्वर्ण भस्म घटित योग लाभकारी सिद्ध होते हैं।
हार्ट अटैक वाले रोगी को मकरध्वज के साथ स्वर्ण भस्म का
सेवन करवा देने से रोगी एक दो खुराक में शरीर में आई चुस्ती फुर्ती देखकर हैरान रह जाता है।
मरते हुए रोगी की जीभ पर स्वर्ण भस्म शहद में मिलाकर चटा दी जाए तो रोगी कुछ घंटे तो बातें कर ही जाता है।
कई कई वर्षों से दुखी सोरेबरल पल्सी, मस्क्यूलर डिस्ट्राफी, कैंसर , मधुमेह, नामर्दी, डिप्रेशन आदि रोगी स्वर्ण भस्म मिश्रित नुस्खों से ठीक होते हैं।
स्वर्ण निर्मित योगों का इस्तेमाल करने के लिए आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
स्वर्ण भस्म के
मेरे अगले लेख का इंतजार करें।
लेख पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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आपका अपना शुभचिंतक
✍🏻 वैद्य अमनदीप सिंह चीमा,
अमन आयुर्वेद, दसुआ 144205 पंजाब
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