★ शिलाजीत रसायन स्वर्ण युक्त★
आयुर्वेद शास्त्र में शिलाजित बहुत प्रसिद्ध एवं प्रशंसित है. आयुर्वेद की प्रसिद्ध पुस्तक चरक संहिता में तो यहाँ तक लिखा गया है कि "जगत में ऐसा कोई साध्य रोग नहीं है जिसे उचित समय पर व उचित योगों के साथ विधिपूर्वक किये गये शिलाजित के प्रयोग से ठीक न हो।
शिलाजित न केवल रोगों का उपचार करने में सक्षम है, बल्कि यह सम्यक प्रयोग किये जाने पर स्वस्थ मनुष्य में भी उत्तम बल प्रदान करता है.
यही कारण है कि आयुर्वेद के बल्य, पौष्टिक, ओजवर्धक, दौर्बल्यहर, धातुपौष्टिक आदि अधिकांश योगों में तो शिलाजित का प्रयोग किया ही है, वहीं विभिन्न रोगों, जैसे कि मधुमेह, बहुमूत्रता, प्रमेह, धातुक्षीणता, नपुंसकता, निर्बलता, मूत्रकृच्छ्र, क्षय, वातरोग, पाण्डु, उदर रोग, अंगघात आदि अनेक रोगों में यथायोग्य अनुपान से प्रयोग किया जाता है।
यह शिलाजित नामक पाषाण स्राव आयुर्वेदानुसार कटु, तिक्त, उष्ण, कटुपाकी, रसायन, छेदी, योगवाही गुण वाला होता है तथा कफ-मेद-अश्मरी-शर्करा, मूत्रकृच्छ, क्षय, श्वास, वातरोग, अर्श, पाण्डु, अपस्मार, उन्माद, शोथ, कुष्ठ, कृमि व उदर आदि अनेकानेक रोगों का नाश करने वाला होता है.
शिलाजित अपने उत्पत्ति क्षेत्र की प्रस्तर चट्टानों के गुणानुसार चार प्रकार का कहा गया है.
1. स्वर्ण शिलाजित:- मधुर, कषाय, शीतल, वातपित्तहर होता है.
2. रजत शिलाजित:- तिक्त, शीतल, मधुरपाकी, पित्तकफहर होता है.
3. ताम्र शिलाजित:- कटु, उष्ण, कफहर है.
4. लौह शिलाजित:- कड़वा, सौम्य, कटुपाकी, शीत होता है.
इनमें से लौह शिलाजतु सर्वश्रेष्ठ होता है.
** शुद्ध शिलाजित की पहचान कैसे करें:-
जैसाकि पूर्व में बताया गया है कि शिलाजित चट्टानों से स्रवित होता है, अत: अन्य खनिज द्रव्यों की भाँति इसकी उपलब्धता भी परिमित है. स्पष्ट है कि बाजार में उपलब्ध शिलाजित नकली व मिलावटी हो सकता है. प्राय: शिलाजित पहाड़ी क्षेत्रों में प्राप्त होता है, जहाँ वर्ष के अधिकांश समय सर्दी रहती है-सूर्य अपनी प्रखरता पर नहीं होता. अत: यह सम्भव नहीं कि टनों असली सूर्यतापी शिलाजित विक्रयार्थ प्राप्त हो सके.
अब यह आवश्यक हो जाता है कि असली शिलाजित की पहचान कर प्रयोग किया जाये, अन्यथा मनोवांछित लाभ प्राप्त न होने पर शिलाजित व्यर्थ की वस्तु समझी जाने लगती है और आयुर्वेद पर विश्वास डगमगाने लगता है.
** असली शिलाजित की परीक्षा:-
1. शिलाजित के छोटे से टुकड़े को कोयले के अंगारों पर डालने से धुँआ न उठे व सीधी लौ की भाँति खड़ा हो जाए उसे असली माने.
2. शिलाजित के टुकड़े को पानी में डालने पर तार तार होकर नीचे बैठ जाए तो वह असली है.
3. शिलाजित सूख जाने पर उससे गौमूत्र की तरह गंध आती है.
4. असली शिलाजित काले रंग का, गोंद के समान, चिकना व हल्का होता है.
उपरोक्त विधियों से परीक्षण कर तथा जानकारों से संदेह निवारण के उपरान्त प्राप्त असली शिलाजित निस्संदेह ही लाभप्रद व उपयोगी सिद्ध होगा. नकली शिलाजित से लाभ नहीं होता.
*विविध उपयोग:-
पंचकर्म विधि से शरीर का शोधन करने के पश्चात शिलाजित का प्रयोग किया जाने पर श्रेष्ठतम लाभ मिलता है.
शिलाजीत के कुछ प्रमुख प्रयोग
यहाँ कुछ रोगों के लिए शिलाजित के सामान्य प्रयोग बताये जा रहे हैं.--
1. प्रमेह:- शिलाजित 2 रत्ती की मात्रा में एक चम्मच त्रिफला के साथ सेवन करें.
कहा गया है कि असाध्य प्रमेह में भी यदि एक तुला (लगभग 4.66 kg) शिलाजित का सेवन किया जाए तो वह रोगी पूर्ण स्वस्थ हो सकता है. हांलाकि आज के संदर्भ में यह मात्रा बहुत अधिक है.
2. मधुमेह:- शिलाजित 20 ग्राम, हल्दी 20 ग्राम, मेथी, गुड़मार व विजयसार तीनों 40-40 ग्राम मिलाकर महीन पीसकर जामुन के रस लेना लाभप्रद है.
3. उच्च रक्तचाप:- शिलाजित व अनन्तमूल का समभाग चूर्ण 500 mg की मात्रा में मुलेठी के काढे से लें.
4. बहुमूत्रता:- शिलाजित, बंग भस्म, इलायची दाना, वंसलोचन सूक्ष्म पीस कर 500 mg की मात्रा में गोखरू के क्वाथ से लें.
5. स्वप्नदोष:- शिलाजित, बंगभस्म, लौहभस्म, बबूल गोंद एकमेव कर त्रिफला रस से प्रयोग करें.
6. कामला:- शिलाजित, गिलोयसत्व गौमूत्र से सेवन करें.
7. मूत्रप्रदाह:- इलायची व पीपली चूर्ण को शिलाजित के साथ, चन्दनासव से प्रयोग करें.
8. मस्तिष्क बल्य:- ताजा मक्खन से शिलाजित सेवन करना दिमाग के लिए उत्तम है.
9. धातुक्षीणता:- शिलाजित को केशर-मिश्री मिले दूध से प्रयोग करें.
10. पाण्डु:- शिलाजित को लौहभस्म व त्रिफला से सेवन करना चाहिए.
11. ज्वर:- शिलाजित को पर्पटक क्वाथ से प्रयुक्त किया जाना चाहिए.
12. स्थौल्य:- 2 रत्ती शिलाजित खाली पेट शहद व जल से प्रयोग करवायें.
13. शिरशूल:- शिलाजित 5ग्राम, मजीठ व गिलोयसत्व 20-20 ग्राम मिलाकर दो ग्राम की मात्रा में आँवला मुरब्बा से दें.
14. धातु दौर्बल्य:- शिलाजित 16 भाग, लौहभस्म 4 भाग, अभ्रक भस्म 2 भाग, बंगभस्म 1 भाग मिलाकर 250 mg गोली बनाकर सुबह शाम मिश्रीयुक्त दूध से लें।
उपरोक्त प्रयोग एक दर्शिका मात्र है. रोगी व रोग के पूर्ण निदान पश्चात उचित समायोजन करें.
** शिलाजित युक्त विशिष्ट योग:-
शिलाजित के अनेक योग बाजार में उपलब्ध हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख योग हैं-
शिलाजत्वादि वटी
वीर्यशोधन वटी
चन्द्रप्रभा वटी
प्रमेहगजकेशरी वटी
आरोग्यवर्द्धिनी वटी
ब्राह्मी वटी
आदि....
** शिलाजित सेवन में अपथ्य:-
उष्ण पदार्थ, गरिष्ठ भोजन, लाल मिर्च, तेज मसाले, शराब, अण्डे, माँस-मछली, तैल, गुड, खटाई, कुलथी, मकोय, दिन में सोना, मल-मूत्र का वेग रोकना, अति व्यायाम, अति स्त्री संग, मानसिक तनाव आदि का शिलाजित सेवन काल में परहेज करें.
** शिलाजित सेवन वर्जित :-
अत्यन्त गुणयुक्त व उपयोगी होते हुए भी कुछ स्थितियों में इसका सेवन निषेध किया गया है. जैसे- पित्त प्रकृति, अम्लपित्त, अल्सर, दाह, शारीरिक उष्णता आदि.
अन्त में हम यही कहना चाहेंगें कि यथाविधि, उचित अनुपान से चिकित्सक की सलाह के अनुसार प्रयोग किया गया असली शिलाजित निस्सन्देह उपयोगी सिद्ध होता है. शीतकाल में शुद्ध शिलाजित या शिलाजित के योग अवश्य लाभ करते हैं.
शिलाजीत सूर्यतापी से हम #शिलाजीत_रसायन_स्वर्ण_युक्त तैयार करते हैं जो कि शिलाजीत के गुणों में वृद्धि कर देता है।
शिलाजीत रसायन के घटक निम्नलिखित हैं।
शिलाजीत सूर्यतापी,
अभ्रक भस्म सहस्त्र,
केसर ,
हीरक भस्म ,
स्वर्ण भस्म
बहुमूल्य घटक होने से महंगा तो बनता ही है , इसकी पहली खुराक ही शरीर में करंट भर देती है।
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