वात चिंतामणि रस ( स्वर्ण भस्म युक्त )
छोटी सी गोली , काम बहुत बड़े
आओ जान लो
वात कुपित होने से शरीर में कई प्रकार के रोग और कष्ट पैदा होते हैं। वात कुपित होने के कई कारण होते हैं। कुछ कारण आगंतुक होते हैं और कुछ कारण निजी होते हैं।
आयुर्वेद शास्त्र ने वात प्रकोप का शमन करने वाले एक से बढ़कर एक उत्तम योग प्रस्तुत किए हैं। उन्हीं योगों में से एक उत्तम योग है वृहत् वात चिंतामणि रस
घटक द्रव्य :
स्वर्ण भस्म 1 ग्राम,
चाँदी भस्म 2 ग्राम,
अभ्रक भस्म 2 ग्राम,
मोती भस्म 3 ग्राम,
प्रवाल भस्म 3 ग्राम,
लोह भस्म 5 ग्राम,
रस सिंदूर 7 ग्राम।
निर्माण विधि :
पहले रस सिंदूर को खूब अच्छी तरह महीन पीस लें, फिर सभी द्रव्य मिलाकर ग्वारपाठे के रस में घुटाई करके,
1-1 रत्ती की गोलियाँ बनाकर, सुखा लें और शीशी में भर लें।
एक रत्ती = 125mg
मात्रा और सेवन विधि :
1-1 गोली दिन में 3 या 4 बार ।
आवश्यकता के अनुसार शहद, मलाई, मुरब्बा,दूध, जूस ।
आपके रोग संबंधी दूसरी सहायक दवा के साथ भी वृहत वात चिंतामणि रस ले सकते हैं।
लाभ :
यह योग वातप्रकोप का शमन कर वातजन्य कष्टों और व्याधियों को दूर करने के अलावा और भी लाभ करता है।
यह पित्त प्रधान वात विकार की उत्तम औषधि है, जो तत्काल असर दिखाती है।
★यह योग नए और पुराने, दोनों प्रकार के रोगों पर विशेष रूप से बराबर लाभ करता है।
वात प्रकोप को शांत करने के अलावा यह शरीर में चुस्ती-फुर्ती और शक्ति पैदा करता है। वात रोगों को नष्ट करने की क्षमता होने के कारण आयुर्वेद ने इस योग की बहुत प्रशंसा की है।
★नींद न आना,
हिस्टीरिया और
मस्तिष्क की ज्ञानवाहिनी नाड़ियों के दोष से उत्पन्न होने वाली बीमारी में इसके सेवन से बड़ा लाभ होता है।
जब वात प्रकोप के कारण हृदय में घबराहट, बचैनी, मस्तिष्क में गर्मी और मुंह में छाले हों, तब पित्तवर्द्धक ताम्र भस्म, मल्ल या कुचला प्रदान औषधि के सेवन से लाभ नहीं होता। ऐसी स्थिति में इस योग के सेवन से लाभ होता है।
★प्रसव के बाद आई कमजोरी को दूर करने और सूतिका रोग नष्ट करने में यह योग शीघ्र लाभ करता है। वृद्धावस्था में वात प्रकोप होने और शरीर के कमजोर होने पर इस योग के सेवन से स्त्री-पुरुषों को जादू की तरह लाभ होता है और शक्ति प्राप्त होती है।
★वात जन्य व्याधियों के अलावा यह योग अन्य व्याधियों को भी दूर करता है। हृदय रोग में अर्जुन छाल का चूर्ण एक चम्मच और इस योग का सेवन करने से उत्तम लाभ होता है। कठिन वात रोग जैसे पक्षाघात (लकवा), अर्दित, धनुर्वात, आदि में भी इस योग का सेवन, रसोन सिद्ध घृत के साथ करने से विशेष लाभ होता है।
★रक्त की कमी (एनीमिया) होने तथा वात नाड़ी संस्थान में कमजोरी होने पर बार-बार चक्कर आना, मानसिक स्थिति बिगड़ना, स्मरणशक्ति कमजोर होना, प्रलाप करना, भूल जाने की आदत पड़ना आदि लक्षणों के पैदा होने पर इस योग का सेवन करने से थोड़े ही दिनों में लाभ हो जाता है।
★ शराब पीने के आदी लोगों के जीर्णवात रोग और जीर्ण पक्षाघात (पुराना लकवा) की स्थिति में अन्य औषधियों की अपेक्षा यह गोली और योगेन्द्र रस ( गोली ) विशेष लाभप्रद सिद्ध होते हैं।
वृहत वात चिंतामणि रस योग में चांदी की भस्म होने से यह योग वृक्क स्थान और मस्तिष्क पर विशेष रूप से शामक कार्य करता है, क्योंकि योगेन्द्र रस रक्त को शुद्ध करने तथा हृदय को बल देने की कार्रवाई करने का विशेष गुण रखता है।
★ मानसिक श्रम के बल पर आजीविका अर्जित करने वाले स्त्री-पुरुषों के लिए यह योग अमृत के समान है, क्योंकि इससे याददाश्त अच्छी हो जाती है। इस योग का सेवन 2 चम्मच सारस्वतारिष्ट के साथ लाभ न होने तक सुबह-शाम करना चाहिए।
इस प्रकार, इतने विवरण से यह सिद्ध हो जाता है कि वृहत् वात चिंतामणि रस एक उत्तम और शरीर को कई प्रकार से शक्ति देने वाला और वात प्रकोप को शांत कर समस्त वातजन्य विकारों को नष्ट कर शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा व वृद्धि करने वाला श्रेष्ठ आयुर्वेदिक योग है। यह योग इसी नाम से बना-बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता की दुकान पर मिलता है।
नोट:- उपरोक्त बताएं गए लाभ के लिए आप वैद्य द्वारा तैयार वृहत वात चिंतामणि रस ही इस्तेमाल करें।
कोई भी आयुर्वेद दवा लेने से पहले आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह जरूरी है। हमने यहां आपकी जानकारी के लिए लेख ( article ) लिखा है।
मिलते हैं ऐसे ही किसी अगले लेख में......
आपका अपना शुभचिंतक
वैद्य अमन चीमा,
अमन आयुर्वेद,144205,PB.
Call & WhatsApp 09915136138
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