Sunday, April 24, 2022

White Discharge Ayurvedic ilaaz || Sex life || sex problem

औरतों का अति कष्टदायक रोग 

श्वेत प्रदर ( Leucorrhora )
परिचय,लक्षण,कारण,घरेलु चिकित्सा,अनुभूत चिकित्सा सहित लेख। 

                              डाँ०अमनदीप सिंह चीमाँ, पंजाब
                                   आयुर्वेदिक चिकित्सक

स्रियों में पाया जाने वाला यह आम रोग है । यह ग्रर्भाशय की श्लैष्मिक कला में शोथ उत्पन्न हो जाने के फलस्वरूप हो होता है । जिस प्रकार पुरूषों में जिरयान ( प्रमेह ) की आम शिकायत पाई जाती है उसी प्रकार यह स्त्रियों को हो जाया करता है । 

यह स्वयं में कोई रोग नही है और यही कारण बड़े-2 वैद्य जो इसको स्वतंत्र रोग मानकर पीड़ित स्त्री का  इलाज की असफल कोशिश करते है ।
क्योकि यह रोग कई रोगों के लक्षण स्वरूप स्त्री को हुआ करता है । आमतौर पर यह रोग गर्भाशय ,डिम्ब ग्रंन्थियों ,गर्भाशय मुख,गर्भाशय का अपने स्थान से खिसकना,योनि मार्ग का शोथ,भीतरी जननेंद्रियों में फोड़ा -फुंसी या रसूली होना,मूत्राशय शोथ,सुजाक,आतशक,रक्ताल्पता,यकृत सम्बन्धी रोग,वृक्कों के विकार,मधुमेह,अजीर्ण ,कब्ज आदि के लक्षणों के अनुरूप हुआ करता है । जब हर वक्त स्त्री की योनि से लसीला पतला सा स्त्राव आया करता है तो बदबू आने लगती है । यह लाल पीला नीला श्वेत किसी भी रंग का हुआ करता है । यह भी दो प्रकार का होता है ।

पहला स्त्राव योनि से दूसरा ग्रीवा( cervix)  से आया करता है । योनि से आने वाला स्त्राव दुधिया या पीला या दही के सामान होता है । ग्रीवा से आने वाला स्त्राव लेसदार श्लेष्मा की भाँति चिपचिपा या पीपयुक्त आया करता है । कभी-2 स्त्राव कम तो कभी-2 इतना कि रोगिणी का पेटीकोट भीगकर तर हो जाया करता है । जिसके कारण कपड़ों पर दाग़ हो जाते है । 

किसी स्त्राव में योनि में खुजली और जलन भी हो जाया करती है । रोगग्रस्त महिला क्षीण व उदास बनी रहती है । हाथ पैरों में  जलन ,हडफूटन,और कमर गर्द बना रहता है । किसी-2 रोगिणी का सिर चकराने लगता है । भूख नही लगा करती है,कब्ज बनी रहती है । पाचन शक्ति निर्बल हो जाती है । किसी-2 रूग्ण महिला को मासिकधर्म गड़बड़ी उत्पन्न हो जाया करती है । रोग जब बिगड़ जाया करता है तो पाचन शक्ति बिगड़ जाती है भूख क्षय हो जाने से  रूग्ण के  चेहरे का रंग पीला और शरीर दुर्बल हो जाता है । कमर और पिन्डलियों मेम दर्द बना रहता है । स्त्री चिड़चिड़ी हो जाती है । 
प्रदर रूक जाने या ज्यादा आने से या तेज दवाएं गर्भाशय में रखने,गर्भाशय का कैंसर, गर्भाशय का अर्श, या डिम्बाशय शोथ,छोटी आयु में विवाह, शारीरिक कमजोरी,जोड़ों का दर्द,जल्दी-जल्दी गर्भ ठहरना,गर्भाशय का टेढ़ा हो जाना आदि कारणों से भी यह रोग हो जाया करता है । इन कारणों के अतिरिक्त थाईराइड ग्लैन्ड,तथा पिच्यूटरी ग्लैन्ड को विकार तथा कुछ विशेष कीटाणुओं के संक्रमणों के कारण भी यह रोग हो जाया करता है । 

यदि यह रोग विशेष प्रकार के कीटाणुओं ( गोनोकोक्स,स्ट्रेप्टाकोक्स,हिमोलिटीक्स,या औरियस,कैनडीड एलबीकेन,ट्राइकोमोनास,हीमोफिल्स,वेजाइनेलिस,एन्टी अमीबा,हिस्टोलिटिका ,थ्रेडवर्म ) इत्यादि के संसर्ग के कारण हो तो पीले रंग का झाग वाला स्त्राव आने लगता है। गर्भाशय के मुख और योनि में चने की दाल के बराबर घाव हो जाते है ,खुजली होती है,मूत्र में कठिनाई पेश आती है।

बाहरी वस्तुए योनि या गर्भाशय में जैसे - लूप ,कापर टी,इत्यादि या रासायनिक द्रव्य ( गर्भ निरोधक द्रव्य,शुक्राणु नाशक द्रव्य ) आदि या  अर्बुद जैसे गर्भाशय-अर्श,गर्भाशय कोष के अर्बुद तथा मानसिक विकृतियाँ जैसे-क्रोध ,चिंता ,शोक आदि मानसिक उत्तेजनाएं  जिनके फलस्वरूप शरीर के अन्त - स्त्रावी में वृधि होकर गर्भाशय में रक्ताधिक्य के कारण तथा हीण स्वास्थय व पाचन संस्थान की विकृतियों जैसे- अजीर्ण ,मंदाग्नि,कोष्ठ बद्धता,अपथ्य भोजन,विषम आहार,अन्य शारीरिक रोगों - जैसे पाण्डू,क्षय,मधुमेह,आदि में योनि की श्लैष्म कला में ग्लोइकोजन के क्षय से,अनेक जीवाणु के उपसर्ग के कारण,अपरिपक्व व प्रजनन अंगों की उत्तेजना तथा अतृप्त सतत कामवासनाओं के कारण जननेद्रियों में रक्ताभिसरण अधिक होने से तथा किरण चिकित्सा-( x-Ray Therapy) के कारण कुत्रिम आर्तव क्षय होने पर एवं अत्यधिक मात्रा में धूम्रपान,तम्बाकू व मद्यपान सेवल इत्यादि से भी श्वेत प्रदर का रोग हो जाया करता है । 

श्वेत प्रदर वात कफज  व्याधि होने से इसमें वात तथा कफ के लक्षणों की वृद्धि हो जाती है और पित्त क्षय के भी लक्षण होते है । इसके साथ ही मैथुन कष्ट (Dyparuenia) योनिकंडू (Pruritis villvae) तथा योनि संकोच (contraction) तथा संक्रमण (infection) का गुदा तक पहुंचना आदि लक्षण भी हो सकते है । 

दवा-दारू:- 
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सबसे पहले मूल कारणों को दूर करें । सामान्य स्वास्थ को उन्नत कीजिएं । शीघ्रपाची लघु पोष्टिक भोजन दीजिए।मानसिक आवेगों यथा -कामवासना,क्रोध,चिन्ता,दु:ख आदि का पूर्ण त्याग करवाएं। जठराग्नि को दीपन,पाचन योगों से प्रदीप्त करें । कोष्ठबद्धता  न रहने दें । अत्याधिक मैथुन न करने दें  । कुत्रिम बाह्मा वस्तुओं को योनि में धारण न करने दें । दिवास्वप्न,गुरू भोजन,मद्यपान,क्षार,अम्ल,लवणों का अत्याधिक सेवन बंद करवाएं । 

@घरेलु जरूरी चिकित्सा :-
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●त्रिफला क्वाथ से योनि प्रक्षालन ( local wash or Irrigation) शतधौंत घृत का पिचुधारण (Plug and Tampoons) का प्रयोग करवाएं। इससे योनिगत कंडू चिपचिपापन और शिथिलता नष्ट हो जाती है । सुबह-शाम साफ वायु में सैर करायें या हल्का फुल्का व्यायाम करायें । 

@घरेलु चिकित्सा:-
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●जटांमांसी ,बबूल के सूखे पत्ते, फुलाई फिटकरी,अनार के फूल,भांग के पत्ते,कत्था बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें । पतले रेशमी कपड़े में ढ़ीली पोटली बाँधकर योनि में गर्भाशयशके मुख के पास रात को रखवाएं ।सुबह निकलवा दें । 

●अशोक छाल,असगंध,विधारा,पठानी लोध 100-100 ग्राम कपड़छान करके रख लें । 5-5 ग्राम गोदुग्ध से दें । 

● मेरी अनुभूत चिकित्सा:-

गिलोय का सत्व 250 मिग्रा.
पुष्यानुग चूर्ण 2 ग्राम
संशमनी वटी 500 मिग्रा.
चंद्रप्रभा वटी 300 मिग्रा.
बंग भस्म 50 मिग्रा.
प्रवाल भस्म 100 मिग्रा.
प्रदरारि लौह 250 मिग्रा.
मधु मालिनी बसंत 1 गोली ।
अशोकारिष्ट +लोध्रासव 25-25 मिलि.बराबर जल में मिलाकर ।खाने के बाद लें । यह एक मात्रा बताई है ।ऐसी दिन में दो मात्राएं सुबह-शाम दें । 1-1 चम्मच सुपारी पाक दूध से सुबह-शाम दें । 

●गोंद कतीरा ,गोंद ढाक,गोंद कीकर,गोंद सिम्बल 20-20 ग्राम ,इसबगोल भुसी 12 ग्राम,
80 ग्राम गोखरू का चूर्ण  मिलाकर रख लें । 4-4 ग्राम सुबह- शाम 3-4 सप्ताह बकरी या गोदुग्ध से लें । 

●सतावर ,असगंध ,अशोक छाल,गोखरू ,सफेद मूसली ,सफेद राल  ,रूमी मस्तगी ,प्रत्येक 25-25 ग्राम ,चांदी के वर्क 6 ग्राम ,मिश्री 125 ग्राम।
सबको कूट पीसकर चूरण बनाकर 42 पुडियाँ बना लें । एक-एक पुडियाँ सुबह-शाम 21 दिन तक गोदुग्ध के साथ खाने से श्वेत प्रदर पीडिता का जीवन सुखमयी हो जाता है ।
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                            Vaid A.S.Cheema
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Thursday, April 14, 2022

अर्जुन पेड़ पर मेरे अनुभव

आयुर्वेद की महान औषधि “अर्जुन” के बारे विस्तार जानकारी और मेरे कुछ अनुभूत प्रयोग 

English Name- Arjun Tree, Arjunolic Myrobalan
Hindi & Bengali Name-Arjun – अर्जुन
Manipuri name – Maiyokpha – মাঈযোকফা
Telugu Name – Tella Maddi
Marathi- Sadaru,
Gujarati Name – Sadado
Tamil Name -Poomarudhu, Neermarudhu / Belma/Marudam patti / Marutu – மருது
Malayalam name – Adamboe, Chola venmaruthu, Poomaruthu, Manimaruthu, Neermaruthu
Kannada Name – Neer matti, Holemaththi, Holedaasaala

 🌹Dr.Amandeep Singh Cheema 🌹

 टर्मिनलिया अर्जुन का उपयोग पारंपरिक रूप से सदियों से हृदय रोग के इलाज के लिए किया जाता रहा है, यही कारण है कि इसे "दिल का रक्षक" उपनाम मिला है। प्रसिद्ध महाकाव्य "महाभारत" के नायक को इस पेड़ के नाम पर इसके सुरक्षात्मक प्रभावों के कारण रखा गया था

🌹Dr.Amandeep Singh Cheema 🌹

★ अर्जुन की छाल से रोगों का उपचार ★

■ हृदय के रोग■
अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा।

अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने-आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।

 •हलवा•
अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 ग्राम डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।

•घृत•
गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से तेज हृदय रोग मिटता है।अर्जुन की छाल का रस 50 ग्राम, यदि गीली छाल न मिले तो 50 पानी ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 ग्राम और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।

यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है। हार्ट अटैक हो चुकने पर 40 मिलीलीटर अर्जुन की छाल का दूध के साथ बना काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन, हृदय में पीड़ा, घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।

हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। हृदय की अधिक धड़कनें और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है।

अर्जुन की छाल का चूर्ण 10 ग्राम को 500 ग्राम दूध में उबालकर खोया बना लें। उस खोये के वजन के बराबर मिसरी का चूरा मिलाकर, प्रतिदिन 10 ग्राम खोया खाकर दूध पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है। अर्जुन की छाल 500 ग्राम को कूट-पीसकर उसमें 125 ग्राम छोटी इलायची 20 ग्राम को मिलाकर सुबह-शाम 3-3 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से तेज दिल की धड़कन और घबराहट नष्ट होती है।अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है। अर्जुन की छाल 10 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम तथा मुलेठी 10 ग्राम। तीनों को एक साथ लगभग 250 ग्राम दूध में उबालकर सेवन करें।

•हड्डी टूटने पर•

अर्जुन के पेड़ के पाउडर की फंकी लेकर दूध पीने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। चूर्ण को पानी के साथ पीसकर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है। प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

★मेरा अनुभूत योग ★
लाक्षादि गुगल 2 गोली
अर्जुन छाल चूर्ण 2 ग्राम 
मीठी सुरंजान 2 ग्राम 
बंसलोचन 1 ग्राम 
मृगश्रृंग भस्म 500 मिलीग्राम 
यह एक मात्रा है । टूटी हड्डी जोड़ने के लिए बहुत लाभदायक है। तुरंत दर्द कम हो जाता है । 

•जलने पर•
आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।

•खूनी प्रदर•
इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करें, इसे दिन में 3 बार लें।

★मेरा अनुभूत नुस्खा★
अर्जुन ,सतावर ,अशोक छाल, नागकेशर , स्वर्ण गैरिक, मुलहठी 50-50 ग्राम का बना चूर्ण 1 चम्मच ताजे जल से लेने से कही से भी निकलने वाला रक्त बंद हो जाता है । खूनी प्रदर के लिए लाभकारी है। 

•शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए•
अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।

•मुंह के छाले•
अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

•पेशाब में धातु का आना•
अर्जुन की छाल को कूटकर 2 कप पानी के साथ उबालें, जब आधा कप पानी शेष बचे, तो उसे छानकर रोगी को पिलायें। इसके 2-3 बार के प्रयोग के बाद पेशाब खुलकर होने लगेगा तथा पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है। अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए।

•ताकत को बढ़ाने के लिए•
अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है।

•श्वेतप्रदर•
महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।

•पुरानी खांसी•
छाती में जलन, पुरानी खांसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।

•हार्ट फेल•
हार्ट फेल और हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।

★मेरा अनुभूत योग★
ह्रदयोग चिंतामणी रस 15 ग्राम 
ह्रदयार्णव रस 15 ग्राम 
अर्जुन छाल 60 ग्राम 
रगड़कर 60 पुडिया बनाकर सुबह शाम अर्जुनारिष्ट से एक-एक पुड़ी लें । हार्ट फेल में लाभदायक है। 

•तेज धड़कन, दर्द, घबराहट•
अर्जुन की पिसी छाल 2 चम्मच, 1 गिलास दूध, 2 गिलास पानी मिलाकर इतना उबालें कि केवल दूध ही बचे, पानी सारा जल जाये। इसमें दो चम्मच चीनी मिलाकर छानकर नित्य एक बार हृदय रोगी को पिलायें। हृदय सम्बंधी रोगों में लाभ होगा। शरीर ताकतवर होगा।

•पेट दर्द•
आधा चम्मच अर्जुन की छाल, जरा-सी भुनी-पिसी हींग और स्वादानुसार नमक मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लेने से पेट के दर्द, गुर्दे का दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।

•पीलिया•
आधा चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण जरा-सा घी में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम लेना चाहिए।

•मुखपाक (मुंह के छाले)•
अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुखपाक मिटता है।

•कान का दर्द•
अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।

•मुंह की झांइयां•
इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।

•टी.बी. की खांसी•
अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा के पत्तों के रस को 7 उबाल देकर दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री या गाय के घी के साथ चटायें। इससे टी.बी. की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो ठीक हो जाता है।

•खूनी दस्त•
अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम, गाय के 250 ग्राम दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाव पानी डालकर हल्की आंच पर पकायें। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर नित्य सुबह पीने से हृदय सम्बंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह विशेषत: वातदोष के कारण हुए हृदय रोग में लाभकारी है।

•रक्तप्रदर (खूनी प्रदर)•
अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध में उबालकर पकायें, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री के साथ दिन में 3 बार स्त्री को सेवन करायें।

•प्रमेह (वीर्य विकार) में•
अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण करें। इस चूर्ण की 20 ग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे, तो इसे शहद के साथ मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हो जाता है।

•शुक्रमेह•
शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या श्वेत चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ पहुंचता है।

•बादी के रोग•
अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।

•खूनीपित्त (रक्तपित्त)•
अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।रक्तपित्त या खून की उल्टी में अर्जुन के तने की छाल के बारीक चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त की वाहिनियों में रक्त जमने लगता है तथा बाहर नहीं निकलता है।

•कुष्ठ (कोढ)•
रक्तदोष एवं कुष्ठ रोग में इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर गुनगुने पानी में मिलाकर नहाने से बहुत लाभ होता है।

•बुखार•
अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है।

•व्रण (घाव) के लिए•
अर्जुन छाल को यवकूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।अर्जुन के जड़ के चूर्ण की फंकी एक चम्मच दूध के साथ देने से चोट या रगड़ लगने से जो नील पड़ जाता है, वह ठीक हो जाता है।घाव में अर्जुन छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम सुबह शाम दूध में पकाकर खायें। छाल को पीसकर घाव पर बांधने से भी अच्छा लाभ होता है। सूखा पाउडर 1 से 3 ग्राम खाना चाहिए

•जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार)•
अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।

•अर्जुन छाल क्षीरपाक विधि•
अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 250 ग्राम दूध में 250 ग्राम (बराबर वजन) पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें उपरोक्त तीन ग्राम (एक चाय का चम्मच हल्का भरा) अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाये तब उतार लें। पीने योग्य होने पर छानकर रोगी द्वारा पीने से सम्पूर्ण हृदय रोग नष्ट होते है और हार्ट अटैक से बचाव होता है।

•दमा या श्वास रोग•
अर्जुन की छाल कूटकर चूर्ण बना लेते हैं। रात को दूध और चावल की खीर बना लेते हैं। सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन का चूर्ण मिलाकर खिलाना चाहिए। इससे श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।

•उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना)•
अर्जुन वृक्ष का चूर्ण, यष्टिमूल तथा लकड़ी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीमीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) में लाभ होता है।

•अतिक्षुधा (अधिक भूख लगना) रोग•
रोगशालपर्णी और अर्जुन की जड़ को बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता है।

•मल बंद (उदावर्त, कब्ज)•
मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए उदावर्त्त को मिटाने के लिए इसकी छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा नियमित रूप से सुबह-शाम पिलाना चाहिए।

•हड्डी के टूटने पर•
हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल पीसकर लेप करने एवं 5 ग्राम से 10 ग्राम खीर पाक विधि से दूध में पकाकर सुबह शाम खाने से लाभ होता है। मात्रा : सूखा पाउडर 1 ग्राम से 3 ग्राम खाना है।

•मधुमेह का रोग•
अर्जुन के पेड़ की छाल, कदम्ब की छाल और जामुन की छाल तथा अजवाइन बराबर मात्रा में लेकर जौकूट (मोटा-मोटा पीसना) करें। इसमें से 24 ग्राम जौकूट लेकर, आधा लीटर पानी के साथ आग पर रखकर काढ़ा बना लें। थोड़ा शेष रह जाने पर इसे उतारे और ठंडा होने पर छानकर पीयें। सुबह-शाम 3-4 सप्ताह इसके लगातार प्रयोग से मधुमेह में लाभ होगा।

•मोटापा दूर करें•
अर्जुन का चूर्ण 2 ग्राम को अग्निमथ (अरनी) के बने काढ़े के साथ मिलाकर पीने से मोटापे में लाभ होता हैं।

•पेट के कीड़ों के लिए•
अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।अर्जुन के फल, भिलावा, लाख, श्रीकस, श्वेत, अपराजिता, बायविंडग और गूगल आदि को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर इसे आग में डालकर धूनी देने से घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल निकलकर भाग जाते हैं।

•पैत्तिक हृदय की बीमारी में•
3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।

•हिस्टीरिया•
अर्जुन वृक्ष की छाल, चौलाई की जड़, काले तिल और तीसी का लुआब 25-25 ग्राम की मात्रा में लें तथा 30 ग्राम की मात्रा में मिश्री लें। इसके बाद इन सबको घोंट लें और अर्जुन के पत्ते के रस के साथ कूट करके छाया में सुखायें। इसका बारीक चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें। अर्जुन के पत्ते के रस के साथ इस औषधि को 4-6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को खिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।

•शरीर में सूजन•
इसकी छाल का बारीक चूर्ण लगभग 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में क्षीर पाक विधि से (दूध में पकाकर) खिलाने से हृदय मजबूत होता है और इससे पैदा होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में अर्जुन की छाल का सूखा हुआ चूर्ण खिलाने से भी सूजन खत्म हो जाती है।गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर पर सूजन आ जाने पर भी अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।।

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Wednesday, April 13, 2022

ऐसा वृक्ष जिसकी छाया में बैठने से दिल के रोग दूर हो जाते है!

●●●●अर्जुन की छाल से रोगों का उपचार●●●●

अर्जुन की छाल के प्रयोग और मेरे कुछ अनुभूत प्रयोग

                  □शेयर ज़रूर करें□

■ हृदय के रोग■
अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा।

अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने‌ आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।

 •हलवा•
अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 ग्राम डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।

•घृत•
गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से तेज हृदय रोग मिटता है।अर्जुन की छाल का रस 50 ग्राम, यदि गीली छाल न मिले तो 50 पानी ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 ग्राम और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।

यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है। हार्ट अटैक हो चुकने पर 40 मिलीलीटर अर्जुन की छाल का दूध के साथ बना काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन, हृदय में पीड़ा, घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।

हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। हृदय की अधिक धड़कनें और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है।

अर्जुन की छाल का चूर्ण 10 ग्राम को 500 ग्राम दूध में उबालकर खोया बना लें। उस खोये के वजन के बराबर मिसरी का चूरा मिलाकर, प्रतिदिन 10 ग्राम खोया खाकर दूध पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है। अर्जुन की छाल 500 ग्राम को कूट-पीसकर उसमें 125 ग्राम छोटी इलायची 20 ग्राम को मिलाकर सुबह-शाम 3-3 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से तेज दिल की धड़कन और घबराहट नष्ट होती है।अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है। अर्जुन की छाल 10 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम तथा मुलेठी 10 ग्राम। तीनों को एक साथ लगभग 250 ग्राम दूध में उबालकर सेवन करें।

●हड्डी टूटने पर●

अर्जुन के पेड़ के पाउडर की फंकी लेकर दूध पीने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। चूर्ण को पानी के साथ पीसकर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है। प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

*मेरा अनुभूत योग *
लाक्षादि गुगल 2 गोली
अर्जुन छाल चूर्ण 2 ग्राम 
मीठी सुरंजान 2 ग्राम 
बंसलोचन 1 ग्राम 
मृगश्रृंग भस्म 500 मिलीग्राम 
यह एक मात्रा है । टूटी हड्डी जोड़ने के लिए। तुरंत दर्द कम हो जाता है । 
डाँ०अमनदीप०सिंह०चीमाँ,दसुआ०पंजाब

●जलने पर●
आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।

●खूनी प्रदर●
इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करें, इसे दिन में 3 बार लें।

*मेरा अनुभूत नुस्खा*
अर्जुन ,सतावर ,अशोक छाल, नागकेशर , स्वर्ण गैरिक, मुलहठी 50-50 ग्राम का बना चूर्ण 1 चम्मच ताजे जल से लेने से कही से भी निकलने वाला रक्त बंद हो जाता है । 
डाँ०अमनदीप०सिंह०चीमाँ,दसुआ०पंजाब

●शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए●
अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।

●मुंह के छाले●
अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

●पेशाब में धातु का आना●
अर्जुन की छाल को कूटकर 2 कप पानी के साथ उबालें, जब आधा कप पानी शेष बचे, तो उसे छानकर रोगी को पिलायें। इसके 2-3 बार के प्रयोग के बाद पेशाब खुलकर होने लगेगा तथा पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है। अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए।

●ताकत को बढ़ाने के लिए●
अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है।

●श्वेतप्रदर●
महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।

●पुरानी खांसी●
छाती में जलन, पुरानी खांसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।

●हार्ट फेल●
हार्ट फेल और हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।

*मेरा अनुभूत योग*
ह्रदयोग चिंतामणी रस 15 ग्राम 
ह्रदयार्णव रस 15 ग्राम 
अर्जुन छाल 60 ग्राम 
रगड़कर 60 पुडिया बनाकर सुबह शाम अर्जुनारिष्ट से एक-एक पुड़ी लें । हार्ट फेल में लाभदायक है। डाँ०अमनदीप०सिंह०चीमाँ,दसुआ०पंजाब󞐼󞐼?

●तेज धड़कन, दर्द, घबराहट●
अर्जुन की पिसी छाल 2 चम्मच, 1 गिलास दूध, 2 गिलास पानी मिलाकर इतना उबालें कि केवल दूध ही बचे, पानी सारा जल जाये। इसमें दो चम्मच चीनी मिलाकर छानकर नित्य एक बार हृदय रोगी को पिलायें। हृदय सम्बंधी रोगों में लाभ होगा। शरीर ताकतवर होगा।

●पेट दर्द●
आधा चम्मच अर्जुन की छाल, जरा-सी भुनी-पिसी हींग और स्वादानुसार नमक मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लेने से पेट के दर्द, गुर्दे का दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।

●पीलिया●
आधा चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण जरा-सा घी में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम लेना चाहिए।

● मुखपाक (मुंह के छाले)●
अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुखपाक मिटता है।

●कान का दर्द●
अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।

●मुंह की झांइयां●
इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।

●टी.बी. की खांसी●
अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा के पत्तों के रस को 7 उबाल देकर दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री या गाय के घी के साथ चटायें। इससे टी.बी. की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो ठीक हो जाता है।

●खूनी दस्त●
अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम, गाय के 250 ग्राम दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाव पानी डालकर हल्की आंच पर पकायें। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर नित्य सुबह पीने से हृदय सम्बंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह विशेषत: वातदोष के कारण हुए हृदय रोग में लाभकारी है।

●रक्तप्रदर (खूनी प्रदर)●
अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध में उबालकर पकायें, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री के साथ दिन में 3 बार स्त्री को सेवन करायें।

●प्रमेह (वीर्य विकार) में●
अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण करें। इस चूर्ण की 20 ग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे, तो इसे शहद के साथ मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हो जाता है।

●शुक्रमेह●
शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या श्वेत चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ पहुंचता है।

●बादी के रोग●
अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।

●खूनीपित्त (रक्तपित्त)●
अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।रक्तपित्त या खून की उल्टी में अर्जुन के तने की छाल के बारीक चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त की वाहिनियों में रक्त जमने लगता है तथा बाहर नहीं निकलता है।

●कुष्ठ (कोढ)●
रक्तदोष एवं कुष्ठ रोग में इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर गुनगुने पानी में मिलाकर नहाने से बहुत लाभ होता है।

● बुखार●
अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है।

●व्रण (घाव) के लिए●
अर्जुन छाल को यवकूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।अर्जुन के जड़ के चूर्ण की फंकी एक चम्मच दूध के साथ देने से चोट या रगड़ लगने से जो नील पड़ जाता है, वह ठीक हो जाता है।घाव में अर्जुन छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम सुबह शाम दूध में पकाकर खायें। छाल को पीसकर घाव पर बांधने से भी अच्छा लाभ होता है। सूखा पाउडर 1 से 3 ग्राम खाना चाहिए

●जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार)●
अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।

●अर्जुन छाल क्षीरपाक विधि●
अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 250 ग्राम दूध में 250 ग्राम (बराबर वजन) पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें उपरोक्त तीन ग्राम (एक चाय का चम्मच हल्का भरा) अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाये तब उतार लें। पीने योग्य होने पर छानकर रोगी द्वारा पीने से सम्पूर्ण हृदय रोग नष्ट होते है और हार्ट अटैक से बचाव होता है।

●दमा या श्वास रोग●
अर्जुन की छाल कूटकर चूर्ण बना लेते हैं। रात को दूध और चावल की खीर बना लेते हैं। सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन का चूर्ण मिलाकर खिलाना चाहिए। इससे श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।

●उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना)●
अर्जुन वृक्ष का चूर्ण, यष्टिमूल तथा लकड़ी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीमीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) में लाभ होता है।

●अतिक्षुधा (अधिक भूख लगना) रोग●
रोगशालपर्णी और अर्जुन की जड़ को बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता है।

●मल बंद (उदावर्त, कब्ज)●
मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए उदावर्त्त को मिटाने के लिए इसकी छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा नियमित रूप से सुबह-शाम पिलाना चाहिए।

●हड्डी के टूटने पर●
हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल पीसकर लेप करने एवं 5 ग्राम से 10 ग्राम खीर पाक विधि से दूध में पकाकर सुबह शाम खाने से लाभ होता है। मात्रा : सूखा पाउडर 1 ग्राम से 3 ग्राम खाना है।

●मधुमेह का रोग●
अर्जुन के पेड़ की छाल, कदम्ब की छाल और जामुन की छाल तथा अजवाइन बराबर मात्रा में लेकर जौकूट (मोटा-मोटा पीसना) करें। इसमें से 24 ग्राम जौकूट लेकर, आधा लीटर पानी के साथ आग पर रखकर काढ़ा बना लें। थोड़ा शेष रह जाने पर इसे उतारे और ठंडा होने पर छानकर पीयें। सुबह-शाम 3-4 सप्ताह इसके लगातार प्रयोग से मधुमेह में लाभ होगा।

●मोटापा दूर करें●
अर्जुन का चूर्ण 2 ग्राम को अग्निमथ (अरनी) के बने काढ़े के साथ मिलाकर पीने से मोटापे में लाभ होता हैं।

●पेट के कीड़ों के लिए●
अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।अर्जुन के फल, भिलावा, लाख, श्रीकस, श्वेत, अपराजिता, बायविंडग और गूगल आदि को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर इसे आग में डालकर धूनी देने से घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल निकलकर भाग जाते हैं।

●पैत्तिक हृदय की बीमारी में●
3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।

●हिस्टीरिया●
अर्जुन वृक्ष की छाल, चौलाई की जड़, काले तिल और तीसी का लुआब 25-25 ग्राम की मात्रा में लें तथा 30 ग्राम की मात्रा में मिश्री लें। इसके बाद इन सबको घोंट लें और अर्जुन के पत्ते के रस के साथ कूट करके छाया में सुखायें। इसका बारीक चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें। अर्जुन के पत्ते के रस के साथ इस औषधि को 4-6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को खिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।

●शरीर में सूजन●
इसकी छाल का बारीक चूर्ण लगभग 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में क्षीर पाक विधि से (दूध में पकाकर) खिलाने से हृदय मजबूत होता है और इससे पैदा होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में अर्जुन की छाल का सूखा हुआ चूर्ण खिलाने से भी सूजन खत्म हो जाती है।गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर पर सूजन आ जाने पर भी अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।।

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