Saturday, October 22, 2022

Jai Ayurveda Jai Dhanwantari

मेरे प्यारे मित्रों नमस्कार

सभी को धन्वंतरि त्रयोदशी की हार्दिक शुभकामनाएं 

श्री गणेशाय नम: श्री महालक्ष्मै नम: श्री धन्वन्तयै नम:

आप सब मित्रों को ( धन्वन्तरि त्रयोदशी )धनतेरस की बहुत- बहुत शुभकामनाएं । 

★धन्वन्तरि त्रयोदशी दीवाली से दो दिन पहले मनाया जाता है ।जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है कि इसे कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है । इस दिन को भगवान धन्वन्तरि ,जो कि आयुर्वेद के गुरू और पिता है,उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है । इसदिन धन्वन्तरि का जन्म हुआ था । भगवान धन्वन्तरि देवताओ के चिकित्सक है और भगवान विष्णु जी के अवतारों में से एक माने जाते है । धन्वन्तरि त्रयोदशी के दिन को धन्वन्तरि दिवस के नाम से भी जाना जाता है । 

★भगवान धन्वन्तरि जी को हिन्दु धर्म में देवताओ का वैद्य कहा गया है ।ये एक महान चिकित्सक थे ।जिन्हे देव पद प्राप्त हुआ ।

★पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वन्तरि इसी दिन अमृत पात्र के साथ प्रकट हुए थे ।
शरद पुर्णिमा को चंद्रमा ,कार्तिक द्वादशी को कामधेन् गाय,त्रयोदशी को धन्वन्तरि ,चतुर्दशी को काली माता ,और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का पार्दुर्भाव हुआ था,इसलिए दीपावली के दो दिन पहले यह पर्व मनाया जाता है । इसी दिन इन्होने आयुर्वेद का पार्दुर्भाव किया था ।

★इसीलिए जो लोग आयुर्वेद दवाओ का अभ्यास करते है । उनके लिए यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है ।इस दिन लोग भगवान धन्वन्तरि की पूजा करते है और उनसे अच्छे स्वास्थ की प्रार्थना करते है । 

★इन्हे भगवान विष्णु का रूप माना जाता है ।जिनकी चार भुजाएं है । ऊपर की दोनों भुजाओ में शंख और चक्र धारण किए हुए है । जबकि अन्य दोनों भुजाओ में से एक में जलूका और औष्धि ओर दूसरे में कलश है । इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है ।इसलिए धनतेरस को पीपल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है । 

★आयुर्वेदिक चिकित्सक इन्हे आरोग्य का देवता कहते है । इन्होने ही अमृतमय औष्धियों की खोज की थी ।इनके वंश में दिवोदास हुए,जिन्होने “शल्य चिकित्सा" का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्राधानाचार्य सुश्रुत बनाए गए ।उन्होने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी ।सुश्रुत विशव के पहले सर्जन थे ।

★इसी दिन धनत्रयोदशी या धनतेरस का पर्व भी मनाया जाता है । धनत्रयोदशी के संदर्भ मे यह दिन धन और समृद्धि से सम्बंधित है । लक्ष्मी-कुबेर पूजा के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है । इसदिन लोग धन - संपत्ति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए देवी लक्ष्मी के साथ- साथ भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है । भगवान कुबेर जिन्हे धन- संपत्ति का कोषाध्यक्ष माना जाता है और लक्ष्मी जिन्हे धन- संपत्ति की देवी माना जाता है ,की पूजा साथ में की जाती है । परंतु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अच्छी सेहत चाहिए जो कि भगवान धनवंतरि उन्हे देते है । 

🙏श्री धन्वन्तरि जी की आरती🙏

 ॐ जय धन्वन्तरि देवा , प्रभु जय धन्वन्तरि देवा । 
जरा रोग से पीड़ित , जन जन सुख देवा ।। 
तुम समुद्र से निकले , अमृत कलश लिए , प्रभु अमृत कलश लिए । आदिवासुर के संकट आकर दूर किये । ॐ जय ...... 

आयुर्वेद बनाया , जग में फैलाया , प्रभु जग में फैलाया । 
सदा स्वस्थ रहने का साधन बतलाया , ॐ जय धन्वन्तरि 
भुजा चारि अति सुन्दर शंख सुधा धारी । प्रभु शंख ........ 
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी , ॐ जय धन्वन्तरि देवा ... 

 तुमको जो नित ध्यावे , रोग नहीं आवे , प्रभु रोग ........ 
असाध्य रोग भी उसका निश्चय मिट जावे । ॐ जय ......
 हाथ जोड़ कर प्रभु जी दास खड़ा तेरा । प्रभु जी दास .. 
वैद्य समाज तुम्हारे चरणों का चेरा । ॐ जय ..... 

धन्वन्तरि जी की आरती जो कोई गावे । प्रभु प्रेम सहित गावे । 
रोग शोक नहीं आवे , सुख समृद्धि पावे । ॐ जय धन्वन्तरि देवा , 
प्रभु जय धन्वंतरि देवा ,जरा रोग से पीड़ित जन जन को सुख देवा 

🙏 जै आयुर्वेद जै धनवंतरी 🙏

आपका अपना शुभचिंतक 
डाँ०अमनदीप सिंह चीमाँ नाड़ी वैद्य,पंजाब
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Monday, October 3, 2022

Power, Stamina ,Strength -Hair

🌿मेरे मुख्य अनुभूत महायोग🌿

 क्या आप ताकत , जौश , जवानी दुबारा हासिल करना चाहते है? 

1.मेरा पहला अनुभूत प्रयोग ✍️
💪 ताकत ,जौश ,जवानी का नुस्खा👌

जिनके बाल झड़ते हो , सफेद हो रहे हो , Dandruff हो उनके लिए यह मेरा बहुत ही खास़ नुस्खा है । मुझे इस नुस्खें ने बहुत ही यश दिलवाया है । यह नुस्खा मैं हमेशा ही तैयार रखता हुँ । आप जरूरत अनुसार बैंक पेमैंट करके कोरियर/पोस्ट से मंगवा सकते है ।देश-विदेश में लोग कोरियर सुविधा 📦 द्वारा मंगवाते है। साथ में हम विशेष तैल तैयार करते है। उसका भी लेख हमने फेसबुक , आपने ब्लॉग पर डाला है। 

💪👌केस रंजक - जौश वर्धक रसायन महायोग ✍️

१.भृंगराज का छाया में सुखाकर बनाया चूर्ण - 800ग्राम ,
२.आमलकी रसायन - 400ग्राम ,
३.काले तिल असली का चूर्ण - 400ग्राम ,
४.लौह भस्म - 20ग्राम 1000 पुट्टी,
५.अभ्रक भस्म 20ग्राम 1000 पुट्टी ,
६.गंधक रसायन स्पैशल- 60ग्राम ,
७.स्वर्ण भस्म -2 ग्राम स्पैशल 
भावना :- 7 बार भृंगराज के रस में , 7 बार ताजे हरे आंवले के रस में घुटाई करके सुखाना है। आपकी दवा तैयार है। 

🫵आपसे कुछ विशेष बात:- 
इसमें स्वर्ण भस्म स्पैशल , लौह भस्म स्पैशल 1000 पुट्टी, अभ्रक भस्म 1000 पुट्टी काफी महंगी है। स्वर्ण भस्म बाजार में कई कंपनियों की अलग-२ रेट में उपल्बध है। लेकिन हमने पाया है कि स्वर्ण भस्म के नाम पर लेवल ही लगा होता है। रिजल्ट मनपसंद , मनचाहा नही मिल पाता। फिर मरीज कहता है नुस्खा बनाया लाभ नही मिला। बस दवा की अशुद्धता , सही परख न कर पाना , गली-सढी , पुरानी, कीड़ा लगी, पंसारी की बेईमानी के कारण नुस्खा खराब हो जाता है। दोष , आयुर्वेद और वैद्य पर चला जाता है। दवा बनाने में बहुत मेहनत , समय , दवाओं को अच्छी तरह देख-परखकर इस्तेमाल में लाना, मेहनत का भी विशेष महत्व है। तभी जो लिखा है , वैसा लाभ मिल पाता है।  

✍️ कुछ नुस्खें की तारीफ:-
इसके प्रयोग से बुड्डे भी जवान हो जाते है । नयी जवानी ,जोश बढता है । बहुत ही लाभकारी योग है । स्वर्ण के बगैर भी बना सकते है। जिन्हे सिर्फ बालों की दिक्कत है। जो ताकत के लिए तैयार करना चाहे वो इसमें स्वर्ण भस्म डालकर ही बनाएं। तभी जौश , जवानी आएगी। हर उम्र में सेवन किया जा सकता है । ताकत के भूखे इसका प्रयोग करके फायदा ले सकते है । बाल झड़ने रूक जाते है , घने काले लंबे हो जाते है । 

 💊 नुस्खा इस्तेमाल कैसे करें?
सुबह-शाम दूध ,जूस , मक्खन, मलाई जो आपको अच्छा लगे उसी से ले सकते है । चिकित्सक की सलाह बिना कोई भी दवा , कभी भी न लें। 

मेरा दूसरा अनुभूत प्रयोग ✍️
2.मेरा दूसरा अनुभूत नुस्खा 👌✍️

अपने दवाखाने पर मैं यह तैयार कर , देश -विदेश कोरियर सुविधा 📦द्वारा भजता हुं। बी.पी में बहुत लाभकारी है । आप भी तैयार करके प्रयोग करें या किसी अनुभवी वैद्य जी से बनवा लें । उच्च रक्तचाप रोगी जो रोजाना गोली लेते है , डाक्टर सारी उम्र दवा खाने को बोल देते है । मैंने अपने इस योग द्वारा गोली सदा के लिए छुड़वाई है । इस योग को लकवा , अधरंग के रोगियों, दिमागी कमजोरी, नींद न आने की समस्या, मिर्गी आदि में भी हम प्रयोग करते है। 

१.भृंगराज छायाशुष्क चूर्ण 100 ग्राम,
२.ब्राह्मी छायाशुष्क चूर्ण 100 ग्राम,
३.अर्जुन छाल ताजा का बनाया चूर्ण 100 ग्राम,
४. घोड़बच 50 ग्राम,
५.शंखपुष्पी 100ग्राम,
६.आँवला 100 ग्राम,
७.रजत ( रोप्य , चांदी ) भस्म 10 ग्राम,
८.मोती ( मुक्ता ) पिष्टी 10 ग्राम,
९.सिद्ध मकरध्वज 10ग्राम

कोई भी चीज बाजार की न लें। भस्में आप अच्छी कंपनी की ले सकते है। 
जड़ी बूटी ताजी लेकर सुखाकर दवा तैयार करें। 

💊दवा बनाने की विधि:- 
सबसे पहले मकरध्वज चमकरहत होने तक खरल करके ( न घिसने वाले खरल में ) (खरल को अंग्रेजों की भाषा में मोरटर कहते है। ) रख लें । फिर भस्म और पिष्टी मिलाने के बाद बाकी जड़ी- बूटीयों के चूर्णों को कपड़छान कर , बताई गई मात्रा मिलाकर , नागरमोथा और अर्जुन के रस में सुखा कर रख लें । 

💊दवा लेने की विधि:- 
सुबह- शाम 3-3 ग्राम दवा, अर्जुनारिष्ट , सारस्वतारिष्ट 15-15 मि.ली. बराबर जल मिलाकर सेवन करें । 

यह दोनों योग मेरे पास हर समय तैयार रहता है। घर बैठे आप मंगवा सकते है । 

ऐसे नुस्खों की ज्यादा जानकारी के लिए आप मेरा ब्लॉग जरुर पढ़े, मेरा फेसबुक पेज KOHINOOR AYURVEDA जरुर follow कर लें। 
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सभी के link 🔗 दे रहा हुं। और हां पोस्ट Share जरुर किया करें, इससे हमारा हौसला बढ़ता है। हम और भी अच्छे-अच्छे नुस्खे आपके लिए लेकर आएंगे। आने वाले समय में आपको बहुत कुछ अच्छा सीखने और जानने को मिलेगा । इसलिए हमारे साथ जरुर बने रहे। 

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लेखक✍️ सदैव आपका अपना शुभचिंतक 
DrAmandeep Singh Cheema ,Punjab, India 
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आपको यह पोस्ट कैसी लगी , Comment करके जरूर बताएं। Link & Share Follow करना न भूलें।

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Wednesday, September 14, 2022

Psoriasis eczema skin Problems

~सोरायसिस,दाद,खुजली,चर्म रोगों की कामयाब औष्धि~

*समर्पित =पूरी कायनात को , आज मेरे जन्म दिन 14September मेरे जन्मदिन पर विशेष पोस्ट*
2016 को पहली बार पोस्ट किया था सोशल मीडिया पर 

~ मेरा अनुभूत “चर्मरोग नाशन महायोग"~

*नुस्खा इस प्रकार है*
*गंधक रसायन 100ग्राम*
*खदिर घनसत् 100ग्राम*
*मजिष्ठ घनसत् 100ग्राम*
*बाकुची चूर्ण 75ग्राम*
*चोबचीनी चूर्ण 50ग्राम*
*प्रवाल पिष्टी 25ग्राम* 
*व्याधिहर्ण रसायन 25ग्राम*
*स्वर्णमाक्षिक भस्म 25ग्राम*
*अरोग्यावर्धनी वटी 50ग्राम* 
*ताम्र भस्म 10ग्राम*

बनाने की विधि :- 
सबसे पहले व्याधिहर्ण रसायन को अच्छी तरह रगड़कर सुरमे की तरह बारीक कर लें , फिर ताम्र भस्म को मिला कर घोटें । फिर उसमें स्वर्णमाक्षिक भस्म, प्रवाल पिष्टी मिला कर घोटे , उसके बाद बाकी बची हुई दवा डालकर खूब घुटाई करें या मिक्सी में मिक्स कर लें । उसके बाद नीम के पत्तों का रस निकालकर उसमें घोटकर सुखाकर , फिर घीग्वार यानि ग्वारपाठा (Aloe vera ) रस में घुटाई करके जब गोली बनने योग हो जाए तो 500-500मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें या सुखाकर 500-500मिलीग्राम के खाली कैपशूलों में भर लें । 

*खाने की विधि*
सुबह-दोपहर-शाम दो-दो कैपसूल या दो-दो गोलियाँ लें । 
रात को स्वादिष्ट विरेचन चूरन ½चम्मच गुनगुने पानी से लें । 
चाय ,गर्म मसाले , तेज मिर्च ,तली ,खट्टी चीजों का परहेज । मंगवाने हेतु संपर्क करे। ं

*सदैव आपका अपना*
*डाँ०अमनदीप सिंह चीमाँ,पंजाब*
*मोबाइल एण्ड वटसऐप 9915136138*

Sunday, September 4, 2022

देशी अनुभूत नुस्खे

मेरे अनुभूत आयुर्वेदिक नुस्खे 


|||| सर्व चर्म रोगहर्ता महायोग ||||
 || नुस्खा ||
@@@@@
घटक द्रव्य : पंचनिम्ब चूर्ण, गंधक रसायन 100-100 ग्राम, व्याधिहरण रसायन 25 ग्राम, प्रवालपिष्टी और आरोग्यवर्द्धिनी वटी 50-50 ग्राम, रजत भस्म 10 ग्राम। यह आप बढ़िया विस्वाशयोग फार्मेसी की ही लें । 

 || भावना द्रव ||
@@@@@@@
 सारिवा, मंजिष्ठा और चोपचीनी तीनों द्रव्य 100-100 ग्राम, वायविडंग, भृंगराज, खैर और कचनार- 50-50 ग्राम।
यह आप पंसारी ,जड़ी-बूटी विक्रेता से ही प्राप्त करें । 

|| निर्माण विधि ||
@@@@@@@@
 सब भावना द्रव्यों को जौकुट करके दो लीटर पानी में उबालें। जब 250 ग्राम पानी बचे तब उतारकर छान लें। ऊपर लिखे द्रव्यों में भावना द्रव्यों का पानी मिलाकर खरल में खूब घुटाई करें और सब द्रव्यों को एक जान करके मटर के आकार की गोलियाँ बनाकर सुखा लें। या कैपसूलों मे भर लें । 
  || मात्रा ||
@@@@@
 सुबह-शाम पानी के साथ 2-2 गोली या कैपसूल लें।

 ||लाभ ||
@@@@
 यह वटी रक्त विकार दूर करके चर्म रोगों को नष्ट करने की एक अत्यंत विश्वसनीय, सफल सिद्ध और श्रेष्ठ औषधि है। त्वचा में खुजली पैदा करने वाले कीटाणुओं को पोषण मिलना बन्द करने में इस वटी का जवाब नहीं। पोषण मिलना बंद होने पर इन कीटाणुओं का बल घटते-घटते समाप्त हो जाता है और व्याधि का शमन हो जाता है। एक्जीमा सूखा हो या गीला, इसके लगातार सेवन से ठीक हो जाता है। 

दूषित विष के उपद्रव स्वरूप उत्पन्न होने वाले कुष्ठ, पाचन विकार से या फिरंग रोग से उत्पन्न होने वाले कुष्ठ के अलावा भंगदर, श्लीपद, वातरक्त, नाड़ी व्रण, प्रमेह, रक्त विकार, सिर दर्द, मेदवृद्धि (मोटापा) आदि अनेक ऐसी व्याधियों को यह वटी ठीक करने में सफल सिद्ध हुई है, जिनके नाम भी आम व्यक्ति ने सुने न होंगे।

 किसी भी प्रकार से हुई शीतपित्ती या अन्य प्रकार की एलर्जी इस वटी के सेवन से ठीक हो जाती है। 
यह वटी रक्त विकार दूर करके चर्म रोगों को नष्ट करने की एक अत्यंत विश्वसनीय, सफल सिद्ध और श्रेष्ठ औषधि है। त्वचा में खुजली पैदा करने वाले कीटाणुओं को पोषण मिलना बन्द करने में इस वटी का जवाब नहीं। कुछ रोगों और कुछ रोगियों की अवस्था के अनुसार, अन्य औषधियों को भी इस वटी के साथ सेवन कराया जाता है। यह इस वटी का चमत्कार ही है कि अन्य औषधियों के साथ प्रमुख औषधि के रूप में इस वटी का सेवन कराने पर सोरायसिस जैसे कठिन साध्य और कई मामलों में असाध्य सिद्ध होने वाले रोग से ग्रस्त रोगियों को इस दुष्ट रोग से मुक्त किया जा सका है।

  || कुष्ठ रोग ||
@@@@@@
 त्वचा पर जगह-जगह सफेद दाग होना, लाल-लाल चकत्ते होना और ठीक ही न होना, पामा, दाद और कुष्ठ रोग का प्रभाव होना आदि शिकायतों को दूर करने के लिए।
 2-2 गोली सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करना चाहिए।

  || परहेज ||
@@@@@
 मांसाहार, शराब, तेज मिर्च-मसाले, कच्चा दूध और भारी चिकने पदार्थों का सेवन बन्द रखना चाहिए। परहेज का पालन करते हुए यह प्रयोग करने पर धीरे-धीरे ये व्याधियाँ ठीक हो जाती हैं।

 रोगी को शक्कर, चावल, गाय का घी, केला, सेन्धा नमक, हलके सुपाच्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। नमक, खट्टे पदार्थ, अरहर की दाल, अधिक चाय-कॉफी, तेज मिर्च-मसाले, बीड़ी-सिगरेट और सूर्य की तेज धूप इन सबका सेवन नहीं करना चाहिए या कम से कम करना चाहिए।


|| बहरापन दूर करने का तैल ||

|| आपका अपना ||
|| डाँ०अमनदीप सिंह चीमाँ,पंजाब ||
|| मोबाइल एण्ड वटसऐप 9915136138 ||

|| घटक ||
१.शहद 
२.अदरख का रस
३.सहिजन की जड़ की छाल का रस 
४. केले की जड़ का रस 
प्रत्येक १-१ सेर , तिल तैल १ सेर लेकर सबकी एकत्र मिलाकर पकावें । तैलमात्र शेष रहने पर उतार कर छान कर रख लें । 

||||| गुण और उपयोग |||||

कान में ज्यादा मैल जम जाने अथवा कान के छेद किसी कारण बन्द हो जाने अथवा सुनने की शक्ति कम हो जाने या सुनाई कम देने पर यह तैल बहुत उपयोगी है । कान की हर तरह की बिमारी में रामबाण की तरह कार्य करता है । रोगियों को बहुत लाभकारी सिद्ध होता है । यह तैल आप घर पर ही बनावें और बनाकर रख लेंवें बनें । 


       ° Night fall स्वप्नदोष एक गंभीर समस्या °
        ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
स्वप्न में मनी खलास हो जाना ।। होता क्या है कि गंदा स्वप्न आता है ,और अनमोल चीज शरीर से बाहर निकल जाती है , जिसे स्वप्नदोष कहा जाता है । महीने में एक - दो बार होने वाले स्वप्नदोष को रोग नही कहा जा सकता , इससे ज्यादा बार यह समस्या आएं तो इसका इलाज जरूर करना चाहिए। 

||कारण ||
ज्यादा गर्म ,खट्टे ,तली हुई चीजों का सेवन , कब्ज , Internet ,पोर्न फिल्में , गंदा साहित्य,गंदी संगत, अमलपित्त,वीर्य में गर्मी,पतलापन,हस्तमैथुन आदि मुख्य कारण है जिनकी वजह से रोग उत्पत्ति होती है ||

स्वप्नदोष नाशक एक अनुभूत योग लिख रहा हुँ जो कि आप लोग आसानी से आयुर्वेद सटोर से ले सकते है । 

||•स्वप्नदोष नाशक मेरा अनुभूत योग•||

गिलोय सत् 15ग्राम , 
जामुन बीज गिरी चूर्ण 150ग्राम,
प्रवाल पिष्टी 15 ग्राम ,
कुकतांडत्वक भस्म 15ग्राम ,
त्रिबंग भस्म 5ग्राम ,
मोती पिष्टी 3ग्राम ,
रजत भस्म 3ग्राम 

||•बनाने की विधि•||
यह सब दवा आप खरल में डालकर , घुटाई करके एक जान करलें ।फिर किसी शीशी में डाल कर सुरक्षित रख लेवें । 

||•मात्रा और सेवन विधि •||
जितनी दवा है । इसकी आप 60 पुडियाँ बनाकर रख लें । सुबह-शाम एक-एक पुडियाँ ताजे जल से खाने के 1घंटे बाद लें । 

||•लाभ•||
इसके सेवन से स्वप्नदोष मिट जाता है । वीर्य गाढ़ा होता है । हस्तमैथुन के कारण वीर्य ग्रंथियों में पढ़ी हुई गर्मी निकल जाती है । इसमें प्रवाल पिष्टी ,मोती,रजत भस्म,त्रिबंग आदि जैसी बहुमुल्य औष्धियाँ दिल-दिमाग को ताकत देकर शरीर की बढ़ी हुई गर्मी को कम करके दिल को ठंडक ,ताकत ,मन को शांति देती है । वीर्य की गर्मी को कम करके ,वीर्य को गाढ़ा और ताकतवर बनाती है । इसके 2माह सेवन से सिर्फ स्वप्नदोष ही ठीक नही होगा , शरीर के और भी विकार जो आपने अपनी ही गल्तियों से उत्पन्न किए हुए थे ,ठीक हो जाएगें । शरीर में ताकत आएगी ,मन में प्रसन्नता पैदा होगी । जीवन में नई उमंग ,उत्साह पैदा होगा । चेहरे पर आए तेज को देखकर आपको लोग पूछे बिना नही रहेगे कि आपकी सेहत का राज क्या है । 


||• मधुमेह नाशक काढ़ा •|| 

एक चमत्कारी,संन्यासी नुस्खा,अनुभूत,परीक्षित,सफल नुस्खा 
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इस फारमूले को बनाने की सावधानी यही है कि सारी दवा ताजा ही लेनी है ।

*नुस्खा लिख रहा हुँ ,जो इस प्रकार है*
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•नीम पत्र ताजा
•जामुन पत्र ताजा
•अमरूद पत्र ताजा 
•बेल पत्र ताजा
•आम पत्र ताजा 
•गुडमार बूटी 
 (गुडमार बूटी पंसारी से लें, ओर पाउडर बनाकर ही डालें)

बनाने का तरीका :- 
सबको सामान भाग यानि समभाग लेकर , अच्छी तरह धोकर , कूटकर चटनी जैसा बनाकर,किसी साफ मिट्टी के बर्तन मे डालकर, १६ गुना जल को डालकर धीमी आँच पर रख दें, जब पानी चोथाई हिस्सा रह जाए तब उतारकर, ठंडा होने पर , हाथों से मसलकर ,छानकर , निथारकर रख ले, दवा तैयार है|

*खाने का तरीका*
**************
सुबह खाली पेट 20-50 ml तक लें| बराबर जल मिलाकर ।

*परहेज जो जरूरी है*
*******************
चीनी , चाय, काफी , आलू , मेदा, डालडा घी बिल्कुल बंद कर दें|


•Diabities मधुमेह रोग को जड़ से खत्म कैसे करें? 

|| मधुमेह हर गोल्ड वटी ||

हमसे इसी नाम से मांगें। 

मधुमेह का जो नुस्खा आज इस लेख में लिख रहा हुं , 
यह योग मेरा अनुभूत है। हर समय तैयार रहता है। आयुर्वेद ग्रंथों का अध्ययन करने के बाद इस दवा को बहुत मेहनत से तैयार किया है । इस नुस्खे की हर एक जड़ी - बूटी , भस्मों में मधुमेह को जड़ से खत्म करने के गुण समाएं हुए है। इस दवा का पूरा कोर्स करके आप सदा के लिए मधुमेह रोग से छुटकारा पा सकते है। यह नुस्खा पैंक्रियाज की गड़बड़ी को ठीक करके उसको सही ढंग से काम करने के लिए तैयार करता है , जिससे रोगी के शरीर में इंसुलिन बनने लग जाती है। बाहर से इन्सुलिन नही लेना पढ़ता । insulin की गोली सदा के लिए छूट जाती है। रोगी पूर्ण स्वस्थ होकर पहले की तरह तंदरुस्त जीवन , सुखमय जीवन बिता सकता है। 

• नुस्खा इस प्रकार है:- 

पनीर डोडी घनसत्व
नीम निबोली 
विजयसार घनसत्व,
मकोय घनसत्व, 
गुडमार घनसत्व, 
कुटकी घनसत्व, 
चिरायता घनसत्व,
आमला घनसत्व, 
गिलोय घनसत्व, 
गोरक्षमुंडी घनसत्व 50-50 ग्राम घनसत्व , 
नाग भस्म 100 पुट्टी , 
अभ्रक भस्म 100 पुटी , 
मोती पिष्टी ,
रजत भस्म ,
सिद्ध मकरध्वज 10-10 ग्राम 
स्वर्ण भस्म 5 ग्राम 

सबको मिलाकर घीग्वार ( Aloe vera ) ताजा गुदा में घोटकर गोलियां बना लें ।‌ एक दिन छाया में रखें । फिर अच्छी तरह धूप में सुखाकर , हवा बंद डिब्बे में रख लें। सुबह- शाम गोली दूध या गुनगुना पानी से ले। 

|| जय आयुर्वेद जय धन्वंतरि ||

नोट:- कोई भी दवा लेने से पहले अच्छे अनुभवी वैद्य से सलाह जरूर लें। देश-विदेश दवा भेजने की सुविधा है।

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आपका अपना शुभचिंतक
वैद्य अमनदीप सिंह चीमाँ
कोहिनूर आयुर्वेदा
मोबाइल & Whatsapp 
9915136138 


Monday, August 29, 2022

Mall Sindur मल्ल सिंदूर ਮੱਲ ਸੰਧੂਰ

मल्लसिन्दूर क्या है ? बनाने की विधि, लाभ, विस्तार सहित पोस्ट
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 शुद्ध संखिया 4 .5 तोला ,
शुद्ध पारद 9 तोला ,
शुद्ध गन्धक 5.5 तोला , 
रस कपूर 9 तोला  
स्वर्ण 
प्रथम पारा और गन्धक की कज्जली करें , पीछे उसमें रस कपूर और संखिया पृथक् पृथक् पीस कर मिला ग्वारपाठा ( घीकुमारी ) के रस में दो दिन मर्दन कर सात कपड़मिट्टी की हुई आतशी - शीशी में भर कर बालुकायन्त्र में 2 दिन पकावें । स्वांग - शीतल होने पर शीशी को तोड़कर शीशी के गले में जमे हुए मल्लसिन्दूर को निकाल तीन दिन पत्थर के खरल में पीस , खूब महीन होने पर शीशी में भर लें ।
 - सि . भै . म . माला 

★नोट - मल्लसिन्दूर बनाने में बहुत सावधानी की आवश्यकता है । प्रारम्भ में कूपीस्थ द्रव्यों के पिघलने तक मन्द अग्नि दें , बाद में तेज अग्नि दें । लोहे की सलाई से बराबर शीशी के गले को साफ करते रहें । जब तक शीशी में गन्धक रहेगा ; तब तक सलाई में गन्धक पिघला हुआ काले रंग का देखने में आयेगा । करीब 10-12 घन्टे में इस गन्धक का जारण हो जाता है । फिर संखिया का धुआँ निकलने लगता है । इसी समय डाट लगा दें अन्यथा संखिया सब निकल जायेगा । गन्धक रहते हुए यदि डाट लगा दी जाती है तो गन्धक की गैस बन कर डाट को फेंक देती है या शीशी को तोड़ डालती है । अतः डाट सावधानी से लगावें । साथ ही संखिया के धुआँ से भी बचना चाहिए । मल्लसिन्दूर के लिये 36 घण्टे की आँच पर्याप्त है । यदि मल्लसिन्दूर के योग में पारद से चतुर्थांश #स्वर्ण #वर्क मिलाकर बनाया जाय , तो इससे अधिक गुणकारी मल्लचन्द्रोदय बन जाता है । हम स्वर्ण डालकर बनाते है। 

★मात्रा और अनुपान - आधी रत्ती से 1 रत्ती , दिन में दो बार शहद और अदरक के रस के साथ या रोगानुसार अनुपान से दें । 

★गुण और उपयोग -संखिया और कज्जली का यह रासायनिक कल्प अत्यन्त तीक्ष्ण और उष्णवीर्य है । 
पित्त प्रधान रोगों में और पित्त प्रकृति के पुरुषों को यह बहुत हल्की मात्रा में सौम्य औषध सितोपलादि चूर्ण, प्रवाल पिष्टी आदि के मिश्रण के साथ देना चाहिए और ठण्डा उपचार करना चाहिए । 
वात और कफ के विकारों में यह तीर की तरह शरीर में प्रवेश कर शीघ्र ही उत्तम फल दिखलाना है । जन्तुग्न गुण के कारण रक्त में घुसे हुए मलेरिया , हैजा , गरमी ( सिफलिस ) आदि के कीटाणुओं को जल्दी नष्ट करता है । यह रक्तवाहिकाओं में उत्तेजना पैदा करना है और हृदय की गति को बढ़ाता है । तेज बुखार में इसे नहीं देना चाहिए । आतशक के लिये तो इसे न्यूसल्वर्सन इन्जेक्शन ही समझें । आतशक या सूजाक के कारण होने वाले गठिया तथा अन्य उपद्रवों में भी बहुत शीघ्र लाभ देखा गया है । पक्षाघात , आमवात धनुष्टंकार आदि वात रोगों में और कफ - सम्बन्धी कास , श्वास , न्यूमोनिया , उरस्तोय , डब्बा आदि रोगों में आशातीत लाभ करता है । शीतांग और कफ प्रधान सन्निपात में यह अपूर्व प्रभाव दिखलाता है । स्त्रियों के हिस्टीरिया रोग में इसका बहुत जल्दी प्रभाव पड़ता है । एक सप्ताह में ही सब दौरे समाप्त हो जाते हैं । बुढ़ापे की दुर्बलता और पुराने दमे के रोग में मल्लसिन्दूर अमृत के समान गुण करता है । यह पाचक रस को पैदा करके भूख पैदा करता है और मूत्राशय तथा शुक्रप्रणालियों की कमजोरी को दूर करके रक्त उत्पन्न करता है । हस्तमैथुन से नामर्द हुए मनुष्य को इसे अवश्य सेवन करना चाहिए । हैजे और अजीर्ण जन्य दस्तों के विष को यह जल्दी नष्ट करता है । वात , कफजन्य प्रमेह में यह रसायन अच्छा गुण दिखलाता है । अतः केवल बल - वीर्य वृद्धि के लिये भी इसका सेवन किया जाता है । यह थोड़े ही दिनों में शरीर को पुष्ट बनाकर मैथुन शक्ति को बढ़ा देता है । इसको प्रवालपिष्टी जैसी सौम्य औषध के साथ मिलाकर खिलाने से ज्यादा गर्मी नहीं मालूम होती है । कफजन्य सन्निपात में मल्लसिन्दूर का प्रयोग किया जाता है । सन्निपात की प्रारम्भिक अवस्था में इसका प्रयोग करने से सन्निपात की शक्ति कम हो जाती है तथा रोगी भी विशेष परेशान नहीं होता । कफ प्रकोप के कारण कंठ में कफ भरा हुआ रहता हो , घर्र घर्र आवाज होती है , साथ ही थोड़ा कफ भी निकलता हो , अधखुले नेत्र , अक - बक बकना , तन्द्रा , बेहोशी , कभी - कभी निद्रा आ जाना , ज्वर की गर्मी भी ज्यादा न मालूम पड़े - ऐसी अवस्था में मल्लसिन्दूर मधु के साथ देने बहुत फायदा करता है । दूषित जलवायु या कफकारक पदार्थ का विशेष सेवन करने से कफ प्रकुपित हो छाती में संचित होने लगता है । कफसंचित होने से फुफ्फुस और वातवाहिनी नाड़ी कमजोर हो जाती है , जिससे कफ जल्दी बाहर नहीं निकल पाता । फुफ्फुस की कमजोरी के कारण खाँसने में भी कष्ट होता है । ऐसी हालत में मल्लसिन्दूर के प्रयोग से संचित कफ बाहर निकलने लगता है । मल्लसिन्दूर के साथ प्रवाल चन्द्रपुटी या अभ्रक तथा लौह भस्म आदि भी मिलाकर देने से बहुत फायदा होता है । न्यूमोनिया या इन्फ्लुएंजा आदि रोगों में जिनका असर खास कर फुफ्फस पर पड़ता है , ऐसे रोगों से मनुष्य जब ग्रस्त हो जाता है , तब फुफ्फुसों की कमजोरी के कारण श्वास लेने में भी कष्ट होता है और रोगी इतना कमजोर हो जाता है कि वह देर तक बातें भी नहीं कर सकता तथा उसका हृदय भी कमजोर हो जाता है । ऐसी दशा में मल्लसिन्दूर आधी रत्ती , मोती भस्म या पिष्टी 1 रत्ती , लौह भस्म 1 रत्ती- इन्हें मधु या पान के रस में मिलाकर देने से लाभ होता है । मलेरिया ( विषम ज्वर ) में मधु और तुलसी पत्ती के रस के साथ दें । आतशक और सूजाकजन्य वात विकारों में मंजिष्ठादि क्वाथ या सारिवादि हिम और मधु के साथ दें । पक्षाघात आदि विकारों में मल्लसिन्दूर आधी रत्ती मधु के साथ दें । ऊपर से महारास्नादि क्वाथ 5 तोला मधु मिलाकर पिला दें । प्रमेह और बहुमूत्र में मल्लसिन्दूर आधी रत्ती , बंग भस्म 1 रत्ती मधु के साथ दें । शुक्रक्षय में मल्लसिन्दूर आधी में रत्ती , छोटी इलायची चूर्ण 4 रत्ती 2 माशे मिश्री में मिला दूध के साथ दें । आतशक और उसके विकारों में मल्लसिन्दूर आधी रत्ती मधु में मिलाकर चटा दें । ऊपर से सारिवाद्यासव 2 तोला बराबर पानी मिलाकर देना चाहिए । न्यूमोनिया , इन्फ्लुएंजा आदि रोगों में श्रृंगभस्म या गोदन्ती भस्म में मिलाकर पान के रस और मधु के साथ दें ।
आ.सा.सं.ग्ं

यह पोस्ट आपकी जानकारी के लिए है। अनजान इसे न बनाएं। किसी सिद्ध हस्त अनुभवी वैद्य से प्राप्त करके उनके मार्गदर्शन में ही सेवन करें। 

#मल्लसिंदूर #mallsindhur #ayurveda #healthylifestyle #VaidAmanCheema #DrAmandeepSinghCheema #KohinoorAyurveda #स्वर्ण #gold 

आपका अपना शुभचिंतक
डाँ० अमनदीप सिंह चीमाँ वैद्य
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Saturday, August 20, 2022

*महाराजा तिला* लिंग मोटा , लंबा , ताकतवर बनाने के लिए

👉 *महाराजा तिला* 💪🏻
*पारा, आमलासार गंधक, हरताल,केसर,घुघची, संखिया, मीठा तेलिया 5-5 ग्राम , कुकतांड पीतता 10नग , दूध मदार 5 ग्राम , रेशम का कपड़ा, तिल तैल यथावश्यक। 

👉 *विधि तैयार करने की* ✍🏻

सब औष्धियों को तिल तैल में घोटकर मोठ के दाने के समान गोलियां बनाकर भलीभांति सुखालें। फिर उन गोलियों को आतशी शीशी में डालकर तैल निकाल लें। आगदान के तोबरे में लकड़ी के चूरे अथवा मीगनियों की आंच दें। फिर तैल को शीशी में डालकर भूमि के अन्दर दबा दें। अथवा प्रचंड धूप में घर की छत पर ध्यानपूर्वक रखें। जब गाढ़ा पन आ जाए तो समझें तैयार है। सुपारी, सीवन को छोड़कर मर्दन करें। बंगला पान या एरण्ड का कोमल पत्ता या पट्टी लपेट दिया करें। फिर प्रभु की लीला देखें। 

 *मंगवाने के लिए संपर्क कर सकते है।*
*आपका अपना शुभचिंतक*
*Vaid Aman Cheema*
*Whatsapp 9915136138*

Thursday, August 4, 2022

Brahm kamal ब्राह्म कमल

Brahm Kamal “ब्राह्म कमल” देवतों को चढ़ाया जाने वाला फूल 

Flower of Uttrakhand State  . उत्तराखण्ड के लोग इसे “ब्राह्म कमल” कहते है। इस के नाम के बारे काफी मतभेद है।

location Hemkunt Sahib ( Uttrakhand )

( मेरे द्वारा पहली बार 04-08-17 को  पोस्ट की गई ) 

ब्रह्म कमल ऊँचाई वाले क्षेत्रों का एक दुर्लभ पुष्प है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल को इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। ब्रह्म कमल एक रहस्यपूर्ण सफेद कमल है ,जो हिमालय में 11 हजार से 17 हजार फुट की ऊंचाइयों पर पाया जाता है।  उत्तराखंड में यह विशेषतौर पर पिण्डारी से लेकर चिफला, सप्तशृंग , रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक के आसपास के क्षेत्र में यह स्वाभाविक रूप से पाया जाता है।  केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में  ब्रह्म कमल चढ़ाने की परंपरा है।  

यह अत्यंत सुंदर  चमकते सितारे जैसा आकार लिए मादक सुगंध वाला पुष्प है। ब्रह्म कमल को हिमालयी फूलों का सम्राट भी कहा गया है। यह कमल आधी रात के बाद खिलता है इसलिए इसे खिलते देखना स्वप्न समान ही है।  एक विश्वास है कि अगर इसे खिलते समय देख कर कोई कामना की जाए तो अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। 

इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। राज्य पुष्प ब्रह्म कमल बदरीनाथ, रुद्रनाथ, केदारनाथ, कल्पेश्वर आदि ऊच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा। हिमालय क्षेत्र में इन दिनों जगह-जगह ब्रह्म कमल खिलने शुरु हो गए हैं। 

ब्रह्म कमल पुष्प के पीछे हुआ था भीम का गर्व चूर - जब द्रोपदी ने भीम से हिमालय क्षेत्र से ब्रह्म कमल लाने की जिद्द की तो भीम बदरीकाश्रम पहुंचे। लेकिन बदरीनाथ से तीन किमी पीछे हनुमान चट्टी में हनुमान जी ने भीम को आगे जाने से रोक दिया। हनुमान ने अपनी पूंछ को रास्ते में फैला दिया था। जिसे उठाने में भीम असमर्थ रहा। यहीं पर हनुमान ने भीम का गर्व चूर किया था। बाद में भीम हनुमान जी से आज्ञा लेकर ही बदरीकाश्रम से ब्रह्म कमल लेकर गए।

ब्रह्म कमल के औषधीय गुण - ससोरिया ओबिलाटा वानस्पतिक नाम वाला ब्रह्म कमल औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है। भोटिया जनजाति के लोग गांव में रोग-व्याधि न हो, इसके लिए इस पुष्प को घर के दरवाजों पर लटका देते हैं। इस फूल की विशेषता यह है कि जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है। गौर हो कि इस फूल का वानस्पतिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम है तथा इस फूल का प्रयोग जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है। ब्रह्म कमल न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही इसे बेचा जाता है। 

बस इसे उपहार स्वरूप ही प्राप्त किया जाता है, क्योंकि इसे देवताओं का प्रिय पुष्प माना गया है और इसमें जादुई प्रभाव भी होता है।  इस दुर्लभ पुष्प की प्राप्ति आसानी से नहीं होती। हिमालय में खिलने वाला यह पुष्प देवताओं के आशीर्वाद सरीखा है । यह साल में एक ही बार जुलाई-सितंबर के बीच खिलता है और एक ही रात रहता है। इसका खिलना देर रात आरंभ होता है तथा दस से ग्यारह बजे तक यह पूरा खिल जाता है। मध्य रात्रि से इसका बंद होना शुरू हो जाता है और सुबह तक यह मुरझा चुका होता है। इसकी सुगंध प्रिय होती है और इसकी पंखुडियों से टपका जल अमृत समान होता है। भाग्यशाली व्यक्ति ही इसे खिलते हुए देखते हैं और यह उन्हें सुख-समृद्धि से भर देता है। ब्रह्म कमल का खिलना एक अनोखी घटना है। 

यह अकेला ऐेसा कमल है जो रात में खिलता है और सुबह होते ही मुरझा जाता है। सुगंध आकार और रंग में यह अद्भुत है। भाग्योदय की सूचना देने वाला यह पुष्प पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है। जिस तरह बर्फ से ढका हिमालयी क्षेत्र देवताओं का निवास माना जाता है उसी तरह बर्फीले क्षेत्र में खिलने वाले इस फूल को भी देवपुष्प मान लिया गया है। नंदा अष्टमी के दिन देवता पर चढ़े ये फूल प्रसाद रूप में बांटे जाते हैं। मानसून के मौसम में जब यह ऊंचाइयों पर खिलता है  
तो स्थानीय लोग चरागाहों में जाकर इन्हें बोरों में भर कर लाते हैं और मंदिरों में देते हैं। मंदिर में यही फूल चढ़ाने के बाद प्रसाद रूप में वितरित किए जाते हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ के क्षेत्र में मौसम के दौरान पूरे वैभव और गरिमा के साथ इन्हें खिले हुए देखा जा सकता है। वनस्पति विज्ञानियों ने ब्रह्मकमल की 31 प्रजातियां दर्ज की हैं। कहा जाता है कि आम तौर पर फूल सूर्यास्त के बाद नहीं खिलते, पर ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है। धार्मिक मान्यता - ब्रह्म कमल अर्थात ब्रह्मा का कमल, यह फूल माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोडने के भी सख्त नियम होते हैं। जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।

नोट:- यह तस्वीर दिन में लिया गया है , लेकिन मान्यता अनुसार  रात को खिलता हे , यह भ्रम ही है।

#hemkuntsahib #brahmkamal #flowersofinstagram #VaidAmanCheema #flowers #rishikesh #Himalaya #gangotri #Yamanotri #badrinath #kedarnath #uttrakhand #uk 

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Wednesday, August 3, 2022

Gallstones ka ilaaz पित्त की पत्थरी

•पित्त की पत्थरी यानि पित्ताशय में पथरी होना •

गलत खान-पान , बदपरहेजी , अम्ल पित्त ज्यादा , ठंडे पदार्थ , फ्रिज की चीजें , तली चीजें , घी , तैल , मेदा बेकरी आदि चीजों के अतिसेवन से पित्त गाढ़ा होकर पित्ताशय में जम जाता है। जो हरे रंग का होता है। यह कोई पत्थर नही। लेकिन बोलचाल की भाषा में पित्ताशय की पत्थरी , गालस्टोन बोला जाता है। जैसे हर चमकती चीज सोना नही होती , वैसे ही हर पत्थर कहलाने वाली चीज पत्थर जैसी सख्त नही होती । पित्त की पत्थरी जब तक शरीर में है । नर्म रहती है। जब शरीर से बाहर आकर हवा के संपर्क में आती है तो सख्त हो जाती है। आयुर्वेद में बहुत ही कारगर दवाएं है जो इस जमे हुए पित्त को पिघलाकर मल के द्वारा गुदा बाहर से निकाल देती है। ऐसी भी औषधि है जो एक ही बार खाने से पत्थरी निकाल देती है लेकिन पहले वाले जमाने की तरह इतने होंसले वाले मरीज बहुत लाखों में एक मिलते है , आजकल ज्यादातर लोग बहुत नाजुक प्रकृति के है , जो जरा सा भी कष्ट सहन नही कर सकते । क्योंकि एक ही बार में पत्थरी निकालना रिसक वाला होता है। ऐसे में हम लोग ऐसी चिकित्सा किसी मरीज को नही देते। बहुत सी ऐसी आयुर्वेद में दवाएं है जो कि धीरे-धीरे पित्त को पिघलाकर गुदा मार्ग से निकाल देती है। समय लग जाता है। अगर सबर के साथ दवा खाई जाए तो कुछ महीनों में ही पत्थरी बिना दर्द निकल जाती है। दुबारा आने वाले समय में बनती भी नही है। किसी भी प्रकार के आप्रेशन की जरूरत नही होती। लोग पित्त की पत्थरी पर बहुत गुमराह करते है। कोई डाक्टर आप्रेशन बोलता है। तो कोई नोसिखा वैद्य गुर्दों की पत्थरी की दवा ही देता रहता है , जिसके कारण पत्थरी का साइज और बढ़ जाता है। रोगी आयुर्वेद को शक की नजर से देखने लगता है और आयुर्वेद से उसका विश्वास उठ जाता है। फिर वो आप्रेशन करवाकर पित्ताशय ही निकलवा लेता है। जिसके कारण सारी जिंदगी न ज्यादा गर्म चीजें , न ठंडी चीजें खा सकता है। आगे चलकर यह कैंसर बनने का खतरा बना रहता है। अकसर रोगी की कोशिश यही रहनी चाहिए कि वो अच्छे अनुभवी आयुर्वेद जानकर से अपनी केस हिस्ट्री , रिपोर्ट और अपनी डिटेल बताकर सलाह लेकर उसके बताएं नियम और समय अनुसार पूरे पथ्य- परहेज के साथ दवा खाएं तो पूर्ण तरीके से बिना आप्रेशन ठीक होकर अपने अंग को बचाकर कुदरत की अनमोल तोहफे में दी गई शरीर को तंदरुस्त रखकर बचा हुआ जीवन अपने परिवार के साथ खुशी से व्यतीत कर सकता है। अगर आप चाहे तो हमसे बना हुआ दवा पूरी डिटेल बताकर घर बैठे मंगवा सकते है। हर मरीज अनुसार दवा की मात्रा आदि हम अपने हिसाब से सैट करते है। 

आपकी सहूलियत के लिए पित्ताशय पत्थरी के कुछ नुस्खों में से यहां एक नुस्खा दे रहा हुं, बनाना तो कठिन है , लेकिन बहुत से पाठक फार्मूला की ज़िद करते है , उनकी जिज्ञासा शांति के लिए लिख रहा हुं । 

Gallstone Part :3
पित्ताशय अशमरी नाशक योग :3

•त्रिविक्रम रस 2ग्राम,
•अगसत सूतराज रस 8ग्राम
• सूतशेखर रस वृहत 15 ग्राम 
•स्वर्णमाक्षिक भस्म स्पैशल 
भृंगराज , वरना , वरुण में तैयार की हुई-6ग्राम
•अम्लपित्तांतक महायोग गोल्ड वाला-6ग्राम 

सबको मिलाकर 72 घंटे दृढ़ हाथों से खूब रगडाई करके गोली , कैप्सूल या पुड़िया तैयार कर लें। 

अनुपान :- गुनगुना पानी , पेठे का पानी , कुमारी आसव, बालम खीरा से

नोट:- एक माह में 5-15 mm तक पत्थरी पिघलकर निकल जाती है। जो multiple होती है। उनका समय नही बताया जा सकता कम होगी जल्द निकल जाएगी। अगर ज्यादा होगी तो समय लग सकता है। 

आपका अपना शुभचिंतक 
वैद्य अमनदीप सिंह चीमाँ
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Sunday, May 1, 2022

World No.1 Hair Oil “KGanjHarOil”

बालों कि देखभाल :-
★★★★★★★

किसी भी स्त्रि या पुरूष की खूबसूरती में बालों का अहम भुमिका हाेती है । अत: असमय बालों का गिरना युवाआें के लीए चिंता का विषय बन जाता है ।

बाल झडनें के कारण :- 
*******************
बाल झडनें के कई कारण हो सकते है, जिनमें शरीर के लीए जरूरी विटमीन,प्रोटीन, इनोस्टोल आैर खुन की कमी प्रमुख है । इनकी कमी से बाल कुपोषण के शिकार हो जाते है । आैर झडने लगते है । इसके अलावा मानसिक दुर्बलता ,अत्यधिक मानसिक कार्य खराब पाचन क्रिया ,रूसी ,उपदंश आदि भी बाल झडने के प्रमुख कारणों में हो सकते है । सिर के बाल गिरने के कई आैर कारण भी हो सकते है । जिनमें प्रमुख है - मानसिक तनाव, गर्म पानी से बाल धोना, रासायनिक शैम्पू से बाल धोना , बालो मे साबुन का अत्यधिक इस्तेमाल, बालो को ड्रायर से सुखाना, प्रदुषण तथा सिर में खुश्की हाेना आदि ।

लक्षण :- 
******
बाल झडनें के स्थिती में सबसे पहले दोनों कनपटीयों के निकट के बाल झडने शुरू हो जाते है । इसके बाद सिर के मध्य भाग के बाल भी झडनें शुरू हो जाते है । आैर धिरे धिरे बालो की संख्या कम होती जाती है । तथा व्यक्ति गंजा हाे जाता है । बाल गिरने के कई लक्षणों में प्रमुख है - सोने के लिए उपयोग किये जाने वाले तकिए पर टुटे बालों का चिपकना , कंघी करते समय बालो का टुटना , माथे का चौडा होना, सिर की मालिश करते वक्त बालों का टुटकर हाथ में चिपक जाना आदि ।

बचाव:- 
******
बालो को झडने से बचानें व उन्हें काले, मुलायम व चमकदार बनायें रखनें के लिए भोजन में विटमीन ए व बी की मात्रा बढानी चाहीए ।

* इसके साथ ही प्राेटीन ,आयरन, व खनिजयुक्त खाद्य पदार्थो का भरपुर प्रयोग करना चाहिए ।

 *अंकुरित गेंहूं, सेब, केला, पपीता, संतरा, चकोतरा, तरबुज,दुध,मटर, गाजर, हरी पत्तीदार सब्जियां ,पालक, मेथी, सरसौं का साग, गोभी, टमाटर, प्याज व बिना पालिश वाले चावल का प्रयोग करना चाहीए । 

*सप्ताह में एक या दो बार बालो की जडों में नारियल , सरसौ या तिल के तेल से मालिश करनी चाहिए । 

*बालो को धोनें के लिए गर्म पानी व रासायनिक शैम्पू व साबुन इस्तमाल न करें ।

* बालों को सुखानें के लीए ड्रायर आदि का प्रयोग न करें । 
तथा 
*बालो को काला करने के लीए डाई आदि का प्रयोग न करे जहां तक संभव हो हर्बल मेहंदी ही बालो में प्रयोग करे । 
आैर 
*बालो में नियमित कंघी करे, ताकि बालो का व्यायाम होता रहे ।

उपचार :- 
********
*इस समस्या से बचने के लिए रात को कांच के बर्तन में सुखा आंवला भिगोकर रख दें आैर अगले दिन सुबह मसलकर उसकी गुठंलियां निकाल दें तथा उसके पानी से सिर धोंयें । काफी लाभ मिलेगा । 

*सुबह-सुबह घास पर नंगे पांव चलने से बालो को ताजी हवा मिलती है । जो बालो के पोषण के लीए आवश्यक मानेें जाते है । इसके बाद देर तक धुप का सेवन भी करे । इससे मष्तिष्क मे नई उर्जा का संचार होता है । 

*बालो को झडने से बचाने के लिए प्याज, गाजर, टमाटर, बंदगोभी , चुकदंर आदि का सलाद खांये । 

*साथ ही आंवला, अरीठा, शिकाकाई, मेथी, बालछड आदि के पत्तों का पाउडर बनाकर मेहंदी के पाउडर में मिला लें आैर इसे बालो में लेप करें। सुखनें के बाद बालों को धाेंएं। इससे बालो का झडना तथा समय से पहले सफेद होना दोनो ही रूक सकता है । 

*भोजन मे कैल्शीयम व प्रोटीन का सेवन अवश्य करें । 

*बालों में रूसी होने पर निबूं के रस में अंडे की जर्दी मिलाकर उसे बाल की जडों में अंगुलियों मे पोरो से मलें आैर फिर बाल धो ले।

गंजापन होने पर :-
*************
 गुंजा , हाथीदांत , की राख आैर रसवंती प्रत्येक 2 से 10 ग्राम का लेप करने से जिस जगह के बाल झड गये होगें वहां वापस उग जायेगें ।

*दही एवं नमक समान मात्रा मेे मिलाकर जहां- जहां गंजापन आ गया हो , वहां रोज रात्रि को चार - पाचं मिनट मालिश से लाभ होता है ।

बाल सफेद होने पर :- 
****************
निबोंली का तेल दो महीने तक लगाने एवं नाकं मे डालने से अथवा तुलसी के 10 से 20 ग्राम पत्तो के साथ उतनें ही सूखें आवंले को पिसकर नीबुं के रस में मिलाकर लगाने से बाल काले होते है ।

*अल्पायु में सफेद बालों के लिए हाथी दांत , आवंला, एवं भृंगराज, का तेल बनाकर सिर में डालें । 

*घी गर्म करकें उसकी कुछ बुंदे नाकं में टपकाएं। 
तथा 
*दिन में दो बार त्रिफला चूर्ण का प्रयोग करे अवश्य ही लाभ होगा ।
★★★★★★★★★

बालों के लिए स्पैशल तैल हम तैयार करते है जो बालों का झड़ना, सफेद होना, गंजापन में बहुत अच्छा रिजल्ट देता है। 3 महीना इस्तेमाल करना होता है। कोरियर द्वारा घर बैठे मंगवा सकते है। कीमत 2500रु एक बोतल। 5 बोतल पर 20% less होगी ।‌ Delivery Free 
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Sunday, April 24, 2022

White Discharge Ayurvedic ilaaz || Sex life || sex problem

औरतों का अति कष्टदायक रोग 

श्वेत प्रदर ( Leucorrhora )
परिचय,लक्षण,कारण,घरेलु चिकित्सा,अनुभूत चिकित्सा सहित लेख। 

                              डाँ०अमनदीप सिंह चीमाँ, पंजाब
                                   आयुर्वेदिक चिकित्सक

स्रियों में पाया जाने वाला यह आम रोग है । यह ग्रर्भाशय की श्लैष्मिक कला में शोथ उत्पन्न हो जाने के फलस्वरूप हो होता है । जिस प्रकार पुरूषों में जिरयान ( प्रमेह ) की आम शिकायत पाई जाती है उसी प्रकार यह स्त्रियों को हो जाया करता है । 

यह स्वयं में कोई रोग नही है और यही कारण बड़े-2 वैद्य जो इसको स्वतंत्र रोग मानकर पीड़ित स्त्री का  इलाज की असफल कोशिश करते है ।
क्योकि यह रोग कई रोगों के लक्षण स्वरूप स्त्री को हुआ करता है । आमतौर पर यह रोग गर्भाशय ,डिम्ब ग्रंन्थियों ,गर्भाशय मुख,गर्भाशय का अपने स्थान से खिसकना,योनि मार्ग का शोथ,भीतरी जननेंद्रियों में फोड़ा -फुंसी या रसूली होना,मूत्राशय शोथ,सुजाक,आतशक,रक्ताल्पता,यकृत सम्बन्धी रोग,वृक्कों के विकार,मधुमेह,अजीर्ण ,कब्ज आदि के लक्षणों के अनुरूप हुआ करता है । जब हर वक्त स्त्री की योनि से लसीला पतला सा स्त्राव आया करता है तो बदबू आने लगती है । यह लाल पीला नीला श्वेत किसी भी रंग का हुआ करता है । यह भी दो प्रकार का होता है ।

पहला स्त्राव योनि से दूसरा ग्रीवा( cervix)  से आया करता है । योनि से आने वाला स्त्राव दुधिया या पीला या दही के सामान होता है । ग्रीवा से आने वाला स्त्राव लेसदार श्लेष्मा की भाँति चिपचिपा या पीपयुक्त आया करता है । कभी-2 स्त्राव कम तो कभी-2 इतना कि रोगिणी का पेटीकोट भीगकर तर हो जाया करता है । जिसके कारण कपड़ों पर दाग़ हो जाते है । 

किसी स्त्राव में योनि में खुजली और जलन भी हो जाया करती है । रोगग्रस्त महिला क्षीण व उदास बनी रहती है । हाथ पैरों में  जलन ,हडफूटन,और कमर गर्द बना रहता है । किसी-2 रोगिणी का सिर चकराने लगता है । भूख नही लगा करती है,कब्ज बनी रहती है । पाचन शक्ति निर्बल हो जाती है । किसी-2 रूग्ण महिला को मासिकधर्म गड़बड़ी उत्पन्न हो जाया करती है । रोग जब बिगड़ जाया करता है तो पाचन शक्ति बिगड़ जाती है भूख क्षय हो जाने से  रूग्ण के  चेहरे का रंग पीला और शरीर दुर्बल हो जाता है । कमर और पिन्डलियों मेम दर्द बना रहता है । स्त्री चिड़चिड़ी हो जाती है । 
प्रदर रूक जाने या ज्यादा आने से या तेज दवाएं गर्भाशय में रखने,गर्भाशय का कैंसर, गर्भाशय का अर्श, या डिम्बाशय शोथ,छोटी आयु में विवाह, शारीरिक कमजोरी,जोड़ों का दर्द,जल्दी-जल्दी गर्भ ठहरना,गर्भाशय का टेढ़ा हो जाना आदि कारणों से भी यह रोग हो जाया करता है । इन कारणों के अतिरिक्त थाईराइड ग्लैन्ड,तथा पिच्यूटरी ग्लैन्ड को विकार तथा कुछ विशेष कीटाणुओं के संक्रमणों के कारण भी यह रोग हो जाया करता है । 

यदि यह रोग विशेष प्रकार के कीटाणुओं ( गोनोकोक्स,स्ट्रेप्टाकोक्स,हिमोलिटीक्स,या औरियस,कैनडीड एलबीकेन,ट्राइकोमोनास,हीमोफिल्स,वेजाइनेलिस,एन्टी अमीबा,हिस्टोलिटिका ,थ्रेडवर्म ) इत्यादि के संसर्ग के कारण हो तो पीले रंग का झाग वाला स्त्राव आने लगता है। गर्भाशय के मुख और योनि में चने की दाल के बराबर घाव हो जाते है ,खुजली होती है,मूत्र में कठिनाई पेश आती है।

बाहरी वस्तुए योनि या गर्भाशय में जैसे - लूप ,कापर टी,इत्यादि या रासायनिक द्रव्य ( गर्भ निरोधक द्रव्य,शुक्राणु नाशक द्रव्य ) आदि या  अर्बुद जैसे गर्भाशय-अर्श,गर्भाशय कोष के अर्बुद तथा मानसिक विकृतियाँ जैसे-क्रोध ,चिंता ,शोक आदि मानसिक उत्तेजनाएं  जिनके फलस्वरूप शरीर के अन्त - स्त्रावी में वृधि होकर गर्भाशय में रक्ताधिक्य के कारण तथा हीण स्वास्थय व पाचन संस्थान की विकृतियों जैसे- अजीर्ण ,मंदाग्नि,कोष्ठ बद्धता,अपथ्य भोजन,विषम आहार,अन्य शारीरिक रोगों - जैसे पाण्डू,क्षय,मधुमेह,आदि में योनि की श्लैष्म कला में ग्लोइकोजन के क्षय से,अनेक जीवाणु के उपसर्ग के कारण,अपरिपक्व व प्रजनन अंगों की उत्तेजना तथा अतृप्त सतत कामवासनाओं के कारण जननेद्रियों में रक्ताभिसरण अधिक होने से तथा किरण चिकित्सा-( x-Ray Therapy) के कारण कुत्रिम आर्तव क्षय होने पर एवं अत्यधिक मात्रा में धूम्रपान,तम्बाकू व मद्यपान सेवल इत्यादि से भी श्वेत प्रदर का रोग हो जाया करता है । 

श्वेत प्रदर वात कफज  व्याधि होने से इसमें वात तथा कफ के लक्षणों की वृद्धि हो जाती है और पित्त क्षय के भी लक्षण होते है । इसके साथ ही मैथुन कष्ट (Dyparuenia) योनिकंडू (Pruritis villvae) तथा योनि संकोच (contraction) तथा संक्रमण (infection) का गुदा तक पहुंचना आदि लक्षण भी हो सकते है । 

दवा-दारू:- 
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सबसे पहले मूल कारणों को दूर करें । सामान्य स्वास्थ को उन्नत कीजिएं । शीघ्रपाची लघु पोष्टिक भोजन दीजिए।मानसिक आवेगों यथा -कामवासना,क्रोध,चिन्ता,दु:ख आदि का पूर्ण त्याग करवाएं। जठराग्नि को दीपन,पाचन योगों से प्रदीप्त करें । कोष्ठबद्धता  न रहने दें । अत्याधिक मैथुन न करने दें  । कुत्रिम बाह्मा वस्तुओं को योनि में धारण न करने दें । दिवास्वप्न,गुरू भोजन,मद्यपान,क्षार,अम्ल,लवणों का अत्याधिक सेवन बंद करवाएं । 

@घरेलु जरूरी चिकित्सा :-
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●त्रिफला क्वाथ से योनि प्रक्षालन ( local wash or Irrigation) शतधौंत घृत का पिचुधारण (Plug and Tampoons) का प्रयोग करवाएं। इससे योनिगत कंडू चिपचिपापन और शिथिलता नष्ट हो जाती है । सुबह-शाम साफ वायु में सैर करायें या हल्का फुल्का व्यायाम करायें । 

@घरेलु चिकित्सा:-
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●जटांमांसी ,बबूल के सूखे पत्ते, फुलाई फिटकरी,अनार के फूल,भांग के पत्ते,कत्था बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें । पतले रेशमी कपड़े में ढ़ीली पोटली बाँधकर योनि में गर्भाशयशके मुख के पास रात को रखवाएं ।सुबह निकलवा दें । 

●अशोक छाल,असगंध,विधारा,पठानी लोध 100-100 ग्राम कपड़छान करके रख लें । 5-5 ग्राम गोदुग्ध से दें । 

● मेरी अनुभूत चिकित्सा:-

गिलोय का सत्व 250 मिग्रा.
पुष्यानुग चूर्ण 2 ग्राम
संशमनी वटी 500 मिग्रा.
चंद्रप्रभा वटी 300 मिग्रा.
बंग भस्म 50 मिग्रा.
प्रवाल भस्म 100 मिग्रा.
प्रदरारि लौह 250 मिग्रा.
मधु मालिनी बसंत 1 गोली ।
अशोकारिष्ट +लोध्रासव 25-25 मिलि.बराबर जल में मिलाकर ।खाने के बाद लें । यह एक मात्रा बताई है ।ऐसी दिन में दो मात्राएं सुबह-शाम दें । 1-1 चम्मच सुपारी पाक दूध से सुबह-शाम दें । 

●गोंद कतीरा ,गोंद ढाक,गोंद कीकर,गोंद सिम्बल 20-20 ग्राम ,इसबगोल भुसी 12 ग्राम,
80 ग्राम गोखरू का चूर्ण  मिलाकर रख लें । 4-4 ग्राम सुबह- शाम 3-4 सप्ताह बकरी या गोदुग्ध से लें । 

●सतावर ,असगंध ,अशोक छाल,गोखरू ,सफेद मूसली ,सफेद राल  ,रूमी मस्तगी ,प्रत्येक 25-25 ग्राम ,चांदी के वर्क 6 ग्राम ,मिश्री 125 ग्राम।
सबको कूट पीसकर चूरण बनाकर 42 पुडियाँ बना लें । एक-एक पुडियाँ सुबह-शाम 21 दिन तक गोदुग्ध के साथ खाने से श्वेत प्रदर पीडिता का जीवन सुखमयी हो जाता है ।
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                                      आपका अपना 
                            Vaid A.S.Cheema
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Thursday, April 14, 2022

अर्जुन पेड़ पर मेरे अनुभव

आयुर्वेद की महान औषधि “अर्जुन” के बारे विस्तार जानकारी और मेरे कुछ अनुभूत प्रयोग 

English Name- Arjun Tree, Arjunolic Myrobalan
Hindi & Bengali Name-Arjun – अर्जुन
Manipuri name – Maiyokpha – মাঈযোকফা
Telugu Name – Tella Maddi
Marathi- Sadaru,
Gujarati Name – Sadado
Tamil Name -Poomarudhu, Neermarudhu / Belma/Marudam patti / Marutu – மருது
Malayalam name – Adamboe, Chola venmaruthu, Poomaruthu, Manimaruthu, Neermaruthu
Kannada Name – Neer matti, Holemaththi, Holedaasaala

 🌹Dr.Amandeep Singh Cheema 🌹

 टर्मिनलिया अर्जुन का उपयोग पारंपरिक रूप से सदियों से हृदय रोग के इलाज के लिए किया जाता रहा है, यही कारण है कि इसे "दिल का रक्षक" उपनाम मिला है। प्रसिद्ध महाकाव्य "महाभारत" के नायक को इस पेड़ के नाम पर इसके सुरक्षात्मक प्रभावों के कारण रखा गया था

🌹Dr.Amandeep Singh Cheema 🌹

★ अर्जुन की छाल से रोगों का उपचार ★

■ हृदय के रोग■
अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा।

अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने-आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।

 •हलवा•
अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 ग्राम डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।

•घृत•
गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से तेज हृदय रोग मिटता है।अर्जुन की छाल का रस 50 ग्राम, यदि गीली छाल न मिले तो 50 पानी ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 ग्राम और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।

यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है। हार्ट अटैक हो चुकने पर 40 मिलीलीटर अर्जुन की छाल का दूध के साथ बना काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन, हृदय में पीड़ा, घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।

हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। हृदय की अधिक धड़कनें और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है।

अर्जुन की छाल का चूर्ण 10 ग्राम को 500 ग्राम दूध में उबालकर खोया बना लें। उस खोये के वजन के बराबर मिसरी का चूरा मिलाकर, प्रतिदिन 10 ग्राम खोया खाकर दूध पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है। अर्जुन की छाल 500 ग्राम को कूट-पीसकर उसमें 125 ग्राम छोटी इलायची 20 ग्राम को मिलाकर सुबह-शाम 3-3 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से तेज दिल की धड़कन और घबराहट नष्ट होती है।अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है। अर्जुन की छाल 10 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम तथा मुलेठी 10 ग्राम। तीनों को एक साथ लगभग 250 ग्राम दूध में उबालकर सेवन करें।

•हड्डी टूटने पर•

अर्जुन के पेड़ के पाउडर की फंकी लेकर दूध पीने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। चूर्ण को पानी के साथ पीसकर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है। प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

★मेरा अनुभूत योग ★
लाक्षादि गुगल 2 गोली
अर्जुन छाल चूर्ण 2 ग्राम 
मीठी सुरंजान 2 ग्राम 
बंसलोचन 1 ग्राम 
मृगश्रृंग भस्म 500 मिलीग्राम 
यह एक मात्रा है । टूटी हड्डी जोड़ने के लिए बहुत लाभदायक है। तुरंत दर्द कम हो जाता है । 

•जलने पर•
आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।

•खूनी प्रदर•
इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करें, इसे दिन में 3 बार लें।

★मेरा अनुभूत नुस्खा★
अर्जुन ,सतावर ,अशोक छाल, नागकेशर , स्वर्ण गैरिक, मुलहठी 50-50 ग्राम का बना चूर्ण 1 चम्मच ताजे जल से लेने से कही से भी निकलने वाला रक्त बंद हो जाता है । खूनी प्रदर के लिए लाभकारी है। 

•शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए•
अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।

•मुंह के छाले•
अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

•पेशाब में धातु का आना•
अर्जुन की छाल को कूटकर 2 कप पानी के साथ उबालें, जब आधा कप पानी शेष बचे, तो उसे छानकर रोगी को पिलायें। इसके 2-3 बार के प्रयोग के बाद पेशाब खुलकर होने लगेगा तथा पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है। अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए।

•ताकत को बढ़ाने के लिए•
अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है।

•श्वेतप्रदर•
महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।

•पुरानी खांसी•
छाती में जलन, पुरानी खांसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।

•हार्ट फेल•
हार्ट फेल और हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।

★मेरा अनुभूत योग★
ह्रदयोग चिंतामणी रस 15 ग्राम 
ह्रदयार्णव रस 15 ग्राम 
अर्जुन छाल 60 ग्राम 
रगड़कर 60 पुडिया बनाकर सुबह शाम अर्जुनारिष्ट से एक-एक पुड़ी लें । हार्ट फेल में लाभदायक है। 

•तेज धड़कन, दर्द, घबराहट•
अर्जुन की पिसी छाल 2 चम्मच, 1 गिलास दूध, 2 गिलास पानी मिलाकर इतना उबालें कि केवल दूध ही बचे, पानी सारा जल जाये। इसमें दो चम्मच चीनी मिलाकर छानकर नित्य एक बार हृदय रोगी को पिलायें। हृदय सम्बंधी रोगों में लाभ होगा। शरीर ताकतवर होगा।

•पेट दर्द•
आधा चम्मच अर्जुन की छाल, जरा-सी भुनी-पिसी हींग और स्वादानुसार नमक मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लेने से पेट के दर्द, गुर्दे का दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।

•पीलिया•
आधा चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण जरा-सा घी में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम लेना चाहिए।

•मुखपाक (मुंह के छाले)•
अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुखपाक मिटता है।

•कान का दर्द•
अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।

•मुंह की झांइयां•
इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।

•टी.बी. की खांसी•
अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा के पत्तों के रस को 7 उबाल देकर दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री या गाय के घी के साथ चटायें। इससे टी.बी. की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो ठीक हो जाता है।

•खूनी दस्त•
अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम, गाय के 250 ग्राम दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाव पानी डालकर हल्की आंच पर पकायें। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर नित्य सुबह पीने से हृदय सम्बंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह विशेषत: वातदोष के कारण हुए हृदय रोग में लाभकारी है।

•रक्तप्रदर (खूनी प्रदर)•
अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध में उबालकर पकायें, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री के साथ दिन में 3 बार स्त्री को सेवन करायें।

•प्रमेह (वीर्य विकार) में•
अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण करें। इस चूर्ण की 20 ग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे, तो इसे शहद के साथ मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हो जाता है।

•शुक्रमेह•
शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या श्वेत चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ पहुंचता है।

•बादी के रोग•
अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।

•खूनीपित्त (रक्तपित्त)•
अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।रक्तपित्त या खून की उल्टी में अर्जुन के तने की छाल के बारीक चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त की वाहिनियों में रक्त जमने लगता है तथा बाहर नहीं निकलता है।

•कुष्ठ (कोढ)•
रक्तदोष एवं कुष्ठ रोग में इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर गुनगुने पानी में मिलाकर नहाने से बहुत लाभ होता है।

•बुखार•
अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है।

•व्रण (घाव) के लिए•
अर्जुन छाल को यवकूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।अर्जुन के जड़ के चूर्ण की फंकी एक चम्मच दूध के साथ देने से चोट या रगड़ लगने से जो नील पड़ जाता है, वह ठीक हो जाता है।घाव में अर्जुन छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम सुबह शाम दूध में पकाकर खायें। छाल को पीसकर घाव पर बांधने से भी अच्छा लाभ होता है। सूखा पाउडर 1 से 3 ग्राम खाना चाहिए

•जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार)•
अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।

•अर्जुन छाल क्षीरपाक विधि•
अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 250 ग्राम दूध में 250 ग्राम (बराबर वजन) पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें उपरोक्त तीन ग्राम (एक चाय का चम्मच हल्का भरा) अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाये तब उतार लें। पीने योग्य होने पर छानकर रोगी द्वारा पीने से सम्पूर्ण हृदय रोग नष्ट होते है और हार्ट अटैक से बचाव होता है।

•दमा या श्वास रोग•
अर्जुन की छाल कूटकर चूर्ण बना लेते हैं। रात को दूध और चावल की खीर बना लेते हैं। सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन का चूर्ण मिलाकर खिलाना चाहिए। इससे श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।

•उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना)•
अर्जुन वृक्ष का चूर्ण, यष्टिमूल तथा लकड़ी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीमीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) में लाभ होता है।

•अतिक्षुधा (अधिक भूख लगना) रोग•
रोगशालपर्णी और अर्जुन की जड़ को बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता है।

•मल बंद (उदावर्त, कब्ज)•
मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए उदावर्त्त को मिटाने के लिए इसकी छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा नियमित रूप से सुबह-शाम पिलाना चाहिए।

•हड्डी के टूटने पर•
हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल पीसकर लेप करने एवं 5 ग्राम से 10 ग्राम खीर पाक विधि से दूध में पकाकर सुबह शाम खाने से लाभ होता है। मात्रा : सूखा पाउडर 1 ग्राम से 3 ग्राम खाना है।

•मधुमेह का रोग•
अर्जुन के पेड़ की छाल, कदम्ब की छाल और जामुन की छाल तथा अजवाइन बराबर मात्रा में लेकर जौकूट (मोटा-मोटा पीसना) करें। इसमें से 24 ग्राम जौकूट लेकर, आधा लीटर पानी के साथ आग पर रखकर काढ़ा बना लें। थोड़ा शेष रह जाने पर इसे उतारे और ठंडा होने पर छानकर पीयें। सुबह-शाम 3-4 सप्ताह इसके लगातार प्रयोग से मधुमेह में लाभ होगा।

•मोटापा दूर करें•
अर्जुन का चूर्ण 2 ग्राम को अग्निमथ (अरनी) के बने काढ़े के साथ मिलाकर पीने से मोटापे में लाभ होता हैं।

•पेट के कीड़ों के लिए•
अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।अर्जुन के फल, भिलावा, लाख, श्रीकस, श्वेत, अपराजिता, बायविंडग और गूगल आदि को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर इसे आग में डालकर धूनी देने से घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल निकलकर भाग जाते हैं।

•पैत्तिक हृदय की बीमारी में•
3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।

•हिस्टीरिया•
अर्जुन वृक्ष की छाल, चौलाई की जड़, काले तिल और तीसी का लुआब 25-25 ग्राम की मात्रा में लें तथा 30 ग्राम की मात्रा में मिश्री लें। इसके बाद इन सबको घोंट लें और अर्जुन के पत्ते के रस के साथ कूट करके छाया में सुखायें। इसका बारीक चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें। अर्जुन के पत्ते के रस के साथ इस औषधि को 4-6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को खिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।

•शरीर में सूजन•
इसकी छाल का बारीक चूर्ण लगभग 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में क्षीर पाक विधि से (दूध में पकाकर) खिलाने से हृदय मजबूत होता है और इससे पैदा होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में अर्जुन की छाल का सूखा हुआ चूर्ण खिलाने से भी सूजन खत्म हो जाती है।गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर पर सूजन आ जाने पर भी अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।।

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डाँ०अमनदीप०सिंह०चीमाँ,पंजाब
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Wednesday, April 13, 2022

ऐसा वृक्ष जिसकी छाया में बैठने से दिल के रोग दूर हो जाते है!

●●●●अर्जुन की छाल से रोगों का उपचार●●●●

अर्जुन की छाल के प्रयोग और मेरे कुछ अनुभूत प्रयोग

                  □शेयर ज़रूर करें□

■ हृदय के रोग■
अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा।

अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने‌ आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।

 •हलवा•
अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 ग्राम डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।

•घृत•
गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से तेज हृदय रोग मिटता है।अर्जुन की छाल का रस 50 ग्राम, यदि गीली छाल न मिले तो 50 पानी ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 ग्राम और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।

यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है। हार्ट अटैक हो चुकने पर 40 मिलीलीटर अर्जुन की छाल का दूध के साथ बना काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन, हृदय में पीड़ा, घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।

हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। हृदय की अधिक धड़कनें और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है।

अर्जुन की छाल का चूर्ण 10 ग्राम को 500 ग्राम दूध में उबालकर खोया बना लें। उस खोये के वजन के बराबर मिसरी का चूरा मिलाकर, प्रतिदिन 10 ग्राम खोया खाकर दूध पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है। अर्जुन की छाल 500 ग्राम को कूट-पीसकर उसमें 125 ग्राम छोटी इलायची 20 ग्राम को मिलाकर सुबह-शाम 3-3 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से तेज दिल की धड़कन और घबराहट नष्ट होती है।अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है। अर्जुन की छाल 10 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम तथा मुलेठी 10 ग्राम। तीनों को एक साथ लगभग 250 ग्राम दूध में उबालकर सेवन करें।

●हड्डी टूटने पर●

अर्जुन के पेड़ के पाउडर की फंकी लेकर दूध पीने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। चूर्ण को पानी के साथ पीसकर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है। प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

*मेरा अनुभूत योग *
लाक्षादि गुगल 2 गोली
अर्जुन छाल चूर्ण 2 ग्राम 
मीठी सुरंजान 2 ग्राम 
बंसलोचन 1 ग्राम 
मृगश्रृंग भस्म 500 मिलीग्राम 
यह एक मात्रा है । टूटी हड्डी जोड़ने के लिए। तुरंत दर्द कम हो जाता है । 
डाँ०अमनदीप०सिंह०चीमाँ,दसुआ०पंजाब

●जलने पर●
आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।

●खूनी प्रदर●
इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करें, इसे दिन में 3 बार लें।

*मेरा अनुभूत नुस्खा*
अर्जुन ,सतावर ,अशोक छाल, नागकेशर , स्वर्ण गैरिक, मुलहठी 50-50 ग्राम का बना चूर्ण 1 चम्मच ताजे जल से लेने से कही से भी निकलने वाला रक्त बंद हो जाता है । 
डाँ०अमनदीप०सिंह०चीमाँ,दसुआ०पंजाब

●शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए●
अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।

●मुंह के छाले●
अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

●पेशाब में धातु का आना●
अर्जुन की छाल को कूटकर 2 कप पानी के साथ उबालें, जब आधा कप पानी शेष बचे, तो उसे छानकर रोगी को पिलायें। इसके 2-3 बार के प्रयोग के बाद पेशाब खुलकर होने लगेगा तथा पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है। अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए।

●ताकत को बढ़ाने के लिए●
अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है।

●श्वेतप्रदर●
महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।

●पुरानी खांसी●
छाती में जलन, पुरानी खांसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।

●हार्ट फेल●
हार्ट फेल और हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।

*मेरा अनुभूत योग*
ह्रदयोग चिंतामणी रस 15 ग्राम 
ह्रदयार्णव रस 15 ग्राम 
अर्जुन छाल 60 ग्राम 
रगड़कर 60 पुडिया बनाकर सुबह शाम अर्जुनारिष्ट से एक-एक पुड़ी लें । हार्ट फेल में लाभदायक है। डाँ०अमनदीप०सिंह०चीमाँ,दसुआ०पंजाब󞐼󞐼?

●तेज धड़कन, दर्द, घबराहट●
अर्जुन की पिसी छाल 2 चम्मच, 1 गिलास दूध, 2 गिलास पानी मिलाकर इतना उबालें कि केवल दूध ही बचे, पानी सारा जल जाये। इसमें दो चम्मच चीनी मिलाकर छानकर नित्य एक बार हृदय रोगी को पिलायें। हृदय सम्बंधी रोगों में लाभ होगा। शरीर ताकतवर होगा।

●पेट दर्द●
आधा चम्मच अर्जुन की छाल, जरा-सी भुनी-पिसी हींग और स्वादानुसार नमक मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लेने से पेट के दर्द, गुर्दे का दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।

●पीलिया●
आधा चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण जरा-सा घी में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम लेना चाहिए।

● मुखपाक (मुंह के छाले)●
अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुखपाक मिटता है।

●कान का दर्द●
अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।

●मुंह की झांइयां●
इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।

●टी.बी. की खांसी●
अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा के पत्तों के रस को 7 उबाल देकर दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री या गाय के घी के साथ चटायें। इससे टी.बी. की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो ठीक हो जाता है।

●खूनी दस्त●
अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम, गाय के 250 ग्राम दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाव पानी डालकर हल्की आंच पर पकायें। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर नित्य सुबह पीने से हृदय सम्बंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह विशेषत: वातदोष के कारण हुए हृदय रोग में लाभकारी है।

●रक्तप्रदर (खूनी प्रदर)●
अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध में उबालकर पकायें, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री के साथ दिन में 3 बार स्त्री को सेवन करायें।

●प्रमेह (वीर्य विकार) में●
अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण करें। इस चूर्ण की 20 ग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे, तो इसे शहद के साथ मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हो जाता है।

●शुक्रमेह●
शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या श्वेत चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ पहुंचता है।

●बादी के रोग●
अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।

●खूनीपित्त (रक्तपित्त)●
अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।रक्तपित्त या खून की उल्टी में अर्जुन के तने की छाल के बारीक चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त की वाहिनियों में रक्त जमने लगता है तथा बाहर नहीं निकलता है।

●कुष्ठ (कोढ)●
रक्तदोष एवं कुष्ठ रोग में इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर गुनगुने पानी में मिलाकर नहाने से बहुत लाभ होता है।

● बुखार●
अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है।

●व्रण (घाव) के लिए●
अर्जुन छाल को यवकूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।अर्जुन के जड़ के चूर्ण की फंकी एक चम्मच दूध के साथ देने से चोट या रगड़ लगने से जो नील पड़ जाता है, वह ठीक हो जाता है।घाव में अर्जुन छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम सुबह शाम दूध में पकाकर खायें। छाल को पीसकर घाव पर बांधने से भी अच्छा लाभ होता है। सूखा पाउडर 1 से 3 ग्राम खाना चाहिए

●जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार)●
अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।

●अर्जुन छाल क्षीरपाक विधि●
अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 250 ग्राम दूध में 250 ग्राम (बराबर वजन) पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें उपरोक्त तीन ग्राम (एक चाय का चम्मच हल्का भरा) अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाये तब उतार लें। पीने योग्य होने पर छानकर रोगी द्वारा पीने से सम्पूर्ण हृदय रोग नष्ट होते है और हार्ट अटैक से बचाव होता है।

●दमा या श्वास रोग●
अर्जुन की छाल कूटकर चूर्ण बना लेते हैं। रात को दूध और चावल की खीर बना लेते हैं। सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन का चूर्ण मिलाकर खिलाना चाहिए। इससे श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।

●उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना)●
अर्जुन वृक्ष का चूर्ण, यष्टिमूल तथा लकड़ी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीमीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) में लाभ होता है।

●अतिक्षुधा (अधिक भूख लगना) रोग●
रोगशालपर्णी और अर्जुन की जड़ को बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता है।

●मल बंद (उदावर्त, कब्ज)●
मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए उदावर्त्त को मिटाने के लिए इसकी छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा नियमित रूप से सुबह-शाम पिलाना चाहिए।

●हड्डी के टूटने पर●
हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल पीसकर लेप करने एवं 5 ग्राम से 10 ग्राम खीर पाक विधि से दूध में पकाकर सुबह शाम खाने से लाभ होता है। मात्रा : सूखा पाउडर 1 ग्राम से 3 ग्राम खाना है।

●मधुमेह का रोग●
अर्जुन के पेड़ की छाल, कदम्ब की छाल और जामुन की छाल तथा अजवाइन बराबर मात्रा में लेकर जौकूट (मोटा-मोटा पीसना) करें। इसमें से 24 ग्राम जौकूट लेकर, आधा लीटर पानी के साथ आग पर रखकर काढ़ा बना लें। थोड़ा शेष रह जाने पर इसे उतारे और ठंडा होने पर छानकर पीयें। सुबह-शाम 3-4 सप्ताह इसके लगातार प्रयोग से मधुमेह में लाभ होगा।

●मोटापा दूर करें●
अर्जुन का चूर्ण 2 ग्राम को अग्निमथ (अरनी) के बने काढ़े के साथ मिलाकर पीने से मोटापे में लाभ होता हैं।

●पेट के कीड़ों के लिए●
अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।अर्जुन के फल, भिलावा, लाख, श्रीकस, श्वेत, अपराजिता, बायविंडग और गूगल आदि को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर इसे आग में डालकर धूनी देने से घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल निकलकर भाग जाते हैं।

●पैत्तिक हृदय की बीमारी में●
3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।

●हिस्टीरिया●
अर्जुन वृक्ष की छाल, चौलाई की जड़, काले तिल और तीसी का लुआब 25-25 ग्राम की मात्रा में लें तथा 30 ग्राम की मात्रा में मिश्री लें। इसके बाद इन सबको घोंट लें और अर्जुन के पत्ते के रस के साथ कूट करके छाया में सुखायें। इसका बारीक चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें। अर्जुन के पत्ते के रस के साथ इस औषधि को 4-6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को खिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।

●शरीर में सूजन●
इसकी छाल का बारीक चूर्ण लगभग 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में क्षीर पाक विधि से (दूध में पकाकर) खिलाने से हृदय मजबूत होता है और इससे पैदा होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में अर्जुन की छाल का सूखा हुआ चूर्ण खिलाने से भी सूजन खत्म हो जाती है।गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर पर सूजन आ जाने पर भी अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।।

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संस्थापक कोहिनूर आयुर्वेद https://youtu.be/BfYDgpjzP3w 
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Tuesday, March 15, 2022

“बादशाह कोहिनूर महायोग” से ताकत के बादशाह कैसे बनें ?

आपका ध्यान किधर है , ताकत का बादशाह इधर है।‌

जी हां , आपने वो कहावत तो सुनी होगी शेर कभी घास नही खाता , मास खाता है। 

“बादशाही कोहिनूर महायोग”

कृप्या माताएं , बहने इस पोस्ट से दूर रहे, यह पोस्ट सिर्फ पुरुषों के लिए लिखी गई है। 

वैसे ही एक कहावत मेरी भी सुनलो 
मर्द ‌कभी वयाग्रा नही खाता , आयुर्वेदा के शाही योग खाता है । 
उन्ही शाही महायोगों के खजाने से आज आपको बताने जा रहा हूं‌ , अपना अनुभूत महायोग , जो कि आपके अंदर ताकत का तूफान भर देगा , आपके अंग अंग में । बार - बार करके भी आप थकेंगे नही ।‌ बहुत से लोग कहते है कि दवा कितना भी महंगा हो , रिजल्ट चाहिए , मेरे क्लिनिक के सबसे मशहूर पिछले 14-15 साल से जिन्होंने पूरे विश्व में तूफान मचाकर , कमजोर दिलों में जौश भर दिया , आज वो लोग अपनी सुखी विवाहित जीवन जी रहे , जिनके नाम है तूफानी ताकत महायोग, जीवन जौश महायोग , महासतंभन महायोग ) 3-4 पेशेंट ऐसे थे , जिन्हें इन दवाओं से भी बढकर मेरे इस “बादशाही कोहिनूर महायोग” ने अच्छा रिजल्ट दिया है।  जिन्होंने अपने ही हाथों बचपन की गलतियां नादानियां की वजह से , ऊपर से गलत दवाओं के सेवन से अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली , उन्हे तुफानी ताकत महायोग से ताकत वर योग “बादशाही कोहिनूर महायोग”लगा , जिन पर तूफानी ताकत महायोग, फेल हो जाए, उन मरीजों पर इस योग का बहुत ही जबरदस्त रिजल्ट मिला ।‌ यह महंगा भी बहुत है। तूफानी ताकत से 5 गुना ज्यादा असरदार है , 5 गुना ज्यादा दवा इस नुस्खे में डाला जाता है, 5 गुना ज्यादा मेहनत करके बनाया जाता है , 5 गुना ज्यादा पैसा खर्च आता है।  यह ऐसा योग है । अगर इसका सेवन पूरे 3 महीना बिना हस्तमैथुन , बीवी से परहेज करके कर लिया जाए तो पुरुष अत्यंत वीर्यवान बनकर कामदेव के समान हो जाएगा । चेहरा तेज से भर जाएगा , आंखों का नूर बढ़ेगा, चुस्ती , फुर्ती , चाल , डाल मस्त हो जाएगी।  पूरी इमानदारी से 90 दिन परहेज करके दवा खायगा तो‌ यह सब इच्छाएं पूरी होगी । जो 90 दिन दवा खाकर भी संभोग न करेंगा , इस नुस्खे की ताकत संभाल सकेगा । इस दवा में इतनी ताकत है कि संभोग का इतना सबर , परहेज कोई ही कर सकता है ‌। अगर पूरे 45 दिन पूरे परहेज के साथ इसका सेवन कर लिया जाए और 90 दिन खा लिया जाए तो हिजड़ा भी संभोग के काबिल हो सकता है। लोग गाड़ी, बंगला सबपर पैसा खर्च करते है, शादी में लाखों खर्च कर देते है , नशे में लाखों बर्बाद करते है , कुछ भी करते है लेकिन सेहत पर ध्यान नही देते, अगर अपनी जिंदगी राजाओं जैसी ताकत , अपना परिवार खुशियों जैसा देखना चाहते तो “बादशाही कोहिनूर महायोग” का सेवन कर सकते है। 
हर वर्ष आप “बादशाही कोहिनूर महायोग” 20 दिन इस्तेमाल करेंगे तो पूरा एक साल संभोग की ताकत बनी रहती है । “ बादशाही कोहिनूर महायोग” बुजुर्ग भी ले सकते है। जो शौकीन है वो भी ले सकते है। जो लोग जिम के शौकीन है , प्लेयर है , प्लेब्वाय है ले सकते है ‌। जो लोग “बादशाही कोहिनूर महायोग” के सेवन काल में अल्कोहल या कोई नशा लेंगे उनको मैं “बादशाही कोहिनूर महायोग” खाने की सलाह नही देता । जो लोग “बादशाही कोहिनूर महायोग” 5-7 दिन खाकर , कंट्रोल से बाहर होकर तलाशने लगे उनको भी मैं इसकी सलाह नही देता । अगर पैसा खर्च करके “बादशाही कोहिनूर महायोग” का पूरा रिजल्ट लेना है , ऊपर बताएं अनुसार परहेज रखना जरूरी है। मंगवाने के लिए आप मेरे दिए वटसऐप नंबर पर संपर्क कर सकते हैं , पोस्ट शेयर करना चाहो तो कर सकते है। नूस्खा सिर्फ दवा खरीदने वाले को ही बताया जाएगा । लेकिन इतना बता देता हूं कि “बादशाही कोहिनूर महायोग” में 50  जड़ी बूटियों, कुशतों का मिश्रण है। कुछ ऐसे भी घटक है जिनके नाम बहुत कम वैद्य लोगों ने सुने होंगे । कभी समय मिला तो “बादशाही कोहिनूर महायोग” का नुस्खा जरुर शेयर करुगा , बनाने का तरीका बिल्कुल पूर्ण तरीके से बताया जाएं तो दो - तीन घंटे पोस्ट लिखने में ही लग जाएगें ।‌
कोरियर / पोस्ट से भारत / विदेश में आप मेरे बैंक अकाउंट, phonepe , Google pay adwance भेजकर‌ अपना पता , जीभ ( बिना ब्रश किए सुबह )  नाखुन ,चेहरा साफ फोटो भेजें । आपकी समस्या कबसे , कितनी ,उम्र , काम , वजन , हाईट , वेज या नान वेज है। सब लिखकर मेरे वटसऐप पर भेजे। “बादशाही कोहिनूर महायोग" लिख कर बात करें।‌ गुमराह करने वालों से बचें , यह योग केवल हम ही बनाते है। कीमत 45000 एक माह का है। 
एक साथ तीन महीने का लेने पर स्पैशल छूट मिलेगी। 
मेरे क्लिनिक पर आने से 15 दिन पहले appointment लें। 
Appointment पहले से बुक होती है , अपने मरीजों के लिए मैं जल्दबाजी नही करता , बातचीत के लिए खुला समय देता हूं। इसलिए adwance booking करवाएं। घर बैठे भी आप फोन पर बात करके दवा दिए हुए पते पर मंगवा सकते है । ज्यादा जानकारी के लिए वटसऐप पर संपर्क कर सकते है। समय लेकर ही फ़ोन करें। 

चलता हुं .....
सदैव आपका अपना शुभचिंतक
वैद्य अमनदीप सिंह चीमाँ
कोहिनूर आयुर्वेदा 
Near Reet Farm , Hoshiarpur Road, Dasuya
144205 , Punjab , Bharat 
Mobile number 9915136138
https://wa.me/919915136138

Monday, March 7, 2022

मोटापा कैसे खत्म करें? इलाज , कारण क्या होते है ?

::::::::::::::::अब मोटापे की खैर नहीं:::::::::::::

मोटापा कारण , नुकसान , परहेज , इलाज कैसे होगा ? आओ जानते है :- 

कारण ? 
कोई काम न करना , समय पर खाना न खाना , खाने के बीच गैप न करना , पानी कम पीना , ज्यादा खाना , फ्री बैठना , आरामदायक जीवन , दिन में सोते रहना , तैल , घी , तली चीजें , मैदा , चीनी , चाय , फास्ट फूड , पैकट बंद चीजें , सोफ्ट-कोलड ड्रिंक, बेकरी की चीजें खाने से मोटापा बढ़ता है। इन चीजों का परहेज रखें। 

मोटापा से कोनसे रोग पैदा होते है ? 
डायबिटीज़ , हार्ट प्रोब्लम , हाई बी.पी , डिप्रेशन , सास चढ़ना, आस्टिओआर्थराईटिस, थकान , एनीमिया , फैटी लीवर 

कुछ घरेलू नुस्खे:-

त्रिफला चूरन शहद से चाटें जा

पिप्पलामूल शहद से चाटें।

नागरमोथा शहद के साथ चाटें ।
कैलेस्टरोल में भी यह बहुत लाभकारी है।

नीम्बू का रस , दो चम्मच शहद सुबह खाली पेट गर्म पानी में मिलाकर लें। 

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1. सुबह उठते ही यदि आप चाय पीने के आदी हैं
तो दूध की चाय के बजाय ग्रीन टी पिएं। इसमें
एंटी ऑक्सिडेंट होते हैं, जो दिल के लिए
फायदेमंद हैं। यह वजन कम करने में भी मदद करती है।
दिन में तीन-चार बार ग्रीन टी ले सकते हैं।

2. गेहूं के आटे की चपाती के बजाय जौ-चने के आटे
की चपाती फिट रहने और सेहत के लिए वरदान है।

3. सुबह उठकर नीबू-पानी लेना चाहिए। इससे
बॉडी का डिटॉक्सिफिकेशन होता है इसमें आप
शहद भी मिला सकते हैं।

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4. वजन घटाने के लिए डीप फ्राई और तेल से बने
खाने की मात्रा कम कर दें जितना संभव हो,
भाप में पका खाना ही खांए।

5. टमाटर और पुदीने की पत्ती युक्त सलाद खाने
से शरीर में वसा की मात्रा कम होती है।

6. खूब पानी पीकर मोटापे पर आसानी से
नियंत्रण पाया जा सकता है या फिर आप
गुनगुना पानी पी सकते हैं इससे पाचन तंत्र ठीक
प्रकार से काम करता है और शरीर में मौजूद
अतिरिक्त चर्बी कम होती है।

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7. फाइबर की अधिक मात्रा वाले मौसमी जूस
खाएं इसे वजन कम होता है। इनमें आप संतरा,
मौसमी, नीबू और आंवला, सेब, बेरी जैसे फल-
सब्जियां ले सकते हैं।

8. ड्राई फ्रूट्स के सेवन से भी वज़न ठीक रहता है।
बादाम, अखरोट और सूखे मेवों में होता है
ओमेगा थ्री फैटी एसिड। जिससे वजन रहता है
काबू में।

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9. सुबह एक टमाटर खाने से कॉलेस्ट्रोल का लेवल
ठीक रहता है और शरीर में मौजूद वसा भी कम
होती है।

10. भरवां पराठे की बजाय भरवां रोटी खाएं।
इससे एक्स्ट्रा फैट से बचेंगे और सब्जियां भी पेट में
जाएगी।

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11. कैलोरी रहित
गोभी की सब्जी़ या उसका सूप लें, वजन घटाने
में बहुत मदद मिलेगी।

12. जंकफूड बिल्कुल न लें और बाहर के खासकर तले
हुए खाने को न खाएं, ये वजन बढ़ाने में मददगार हैं।

13. खाना खाने के तुरंत बाद पानी न पीएं
बल्कि आधे से एक घंटे का अंतराल जरूर रखें।

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14. सुबह का नाश्ता हैवी करें और दोपहर में कम
कैलोरी और रात में बहुत हलका भोजन करें।

15. खाना चबा-चबा कर धीरे-धीरे खाएं, इससे
आपको कम भूख लगेगी। इन सब उपायों के साथ
ही आपको अपनी जीवनशैली में भी सकारात्मक
बदलाव लाने होंगे। आपको आहार के साथ-साथ
अपना व्यवहार भी दुरुस्त रखना होगा।

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आपको चाहिए कि आप नियमित व्यायाम करें।

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🌾मोटापे के लिए मेरी आयुर्वेदिक अनूभूत दवा🌾

👉मोटापे से प्रेशान रोगी मोटापानाशक दवाऔ का इस्तेमाल करें ।

 कई_रोगों_का_जन्मदाता_मोटापा

👉अरोग्यावर्धनी वटी - 2 -2 गोली सुबह शाम ताजे पानी से ।
👉मेदोहर विडंगादि लौह -2-2 गोली सुबह- शाम पानी से ।
👉त्रिमूर्ती रस 1-1 गोली सुबह-शाम पानी से ।
👉त्रिफला चूर्ण 5-5 ग्राम सुबह- शाम ।
👉अर्क गोमूत्र , अर्क जीरा .अर्क चिरायता ,अर्क गिलोय,अर्क अजवायन पाँचों को 500-500 मिलीलीटर मिलाकर रख लें ।

50-50 ग्राम बराबर पानी में मिलाकर ।
खाने के १ घण्टे बाद लें | 

सारी दवा एक साथ ही लेनी है ।

मोटापे में बहुत आशुकारी दवा है । 
इससे अच्छी दवा मेरी नजर में आयुर्वेद में कोई नही ।

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👉हजारों दवाएं खा -खा कर हार चुके निराश रोगियों के लिए वरदान ।

कोरियर द्वारा दवा मंगवा सकते हैं।

सदैव आपका अपना 
डाँ.ए.एस.चीमाँ
WhatsApp 9915136138
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Monday, January 10, 2022

अस्थमा , दमा , श्वास रोग

•दमा ,अस्थमा ,जमी हुई कफ‌,बलगम को निकालने के लिए नुस्खा•

पंसारी से 100 ग्राम सुहागा खरीदकर लाएं ।‌इसे मुसबर भी बोला जाता है । अंग्रेजी में इसे बोरैक्स भी बोला जाता है ।‌ आयुर्वेद में “टंकण भस्म” इसी से तैयार किया जाता है ।‌

इसे आप खुले मुंह की लोहे के बर्तन पर रखकर फूला बनाकर पीसकर रख लें ।‌
पहली बार जब आप नीचे आग जलाकर बर्तन पर रखेंगे तो इसका पानी बनेगा , फिर कुछ ही देर में देखते ही देखते पानी सूख जाएगा । इसको ठंडा होने पर अच्छी तरह बारीक करके दुबारा बर्तन में डालें , यह फूलकर  काफी मात्रा में बन जाएगा । आप इसे पीसकर साफ डिब्बी में डालकर रख दें । अगर न बना सको तो बना बनाया खरीद लें ।  “वैद्यनाथ टंकण भस्म” ,“व्यास मुलहठी चूर्ण”  , “वैद्यनाथ मकरध्वज या रस सिंदूर”  खरीद लें। 

प्रयोग करने का तरीका :- 
सुहागा का बनाया हुआ पाउडर 30 ग्राम 
मुलहेठी का 30 ग्राम चूर्ण ,
मकरध्वज 2.5ग्राम 3 घंटे घुटाई करके चमकरहत किया हुआ,
अभ्रक भस्म 100 पुट्टी 2.5 ग्राम 

सभी को अच्छी तरह मिलाकर 30 पुड़िया बना लें । सुबह,शाम 
शहद से चाटकर गरम पानी या गर्म दूध लें । 

अगर रोज एक “स्वर्ण वर्क” भी दवा में मिला लिया जाए या तिल के दाने जितनी “स्वर्ण भस्म” मिला ली जाए तो रिजल्ट बहुत तेजी से मिलते हैं । 

वैसे मूल नुस्खे में टंकण और मुलहेठी ही है । आयुर्वेद के किसी -2 ग्रंथ में ही यह नुस्खा मिलता है । जोकि “सुधायष्टी चूर्ण, सुधायष्टी योग” नाम से मिलता है । मैंने अपने अनुभव अनुसार जिन दमा रोगियों को मकरध्वज और अभ्रक भस्म मिलाकर सेवन करवाया , उन्हे बहुत तेजी से रिजल्ट मिला। 

जिन्हें केवल जमी कफ की शिकायत है वह मुलहठी और टंकण सिर्फ दोनों को मिलाकर ही प्रयोग करें । दमा वाले रोगी मकरध्वज , अभ्रक भस्म मिला लें। 

मेरे पास एक दमें का बहुत पुराना रोगी आया जो बहुत कमजोर था , थोड़ा सा चलकर ही बैठ जाया करता था , सांस फूल जाता था । 
मैंने उसे इस दमा वाले मिश्रण में स्वर्ण भस्म मिलाकर दे दी । 
रोगी को पहली पुड़िया खाने के बाद शरीर में ताकत महसूस हुई, दो दिन बाद शरीर में चलने फिरने की ताकत लौट आई ,कुछ ही दिन दवा लेने के बाद काफी चलने के बाद भी नामातर ही सांस फूलता था । 15 दिन की दवा से घर के काम करने लग गया।  दो महीने चिकित्सा के बाद रोगी की दवा बंद कर दी , अब रोगी बिल्कुल ठीक है । 

अपनी सूझबूझ अनुसार यह नुस्खा तैयार करके प्रयोग करें । उससे पहले अच्छे आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह जरूर लें ।‌

सदैव आपका अपना 
डाँ० अमनदीप सिंह चीमाँ, पंजाब
कोहिनूर आयुर्वेद
Whatsapp 9915136138

मेरा नाम हटाकर कापी पेस्ट न किया जाए।