Monday, August 29, 2022

Mall Sindur मल्ल सिंदूर ਮੱਲ ਸੰਧੂਰ

मल्लसिन्दूर क्या है ? बनाने की विधि, लाभ, विस्तार सहित पोस्ट
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 शुद्ध संखिया 4 .5 तोला ,
शुद्ध पारद 9 तोला ,
शुद्ध गन्धक 5.5 तोला , 
रस कपूर 9 तोला  
स्वर्ण 
प्रथम पारा और गन्धक की कज्जली करें , पीछे उसमें रस कपूर और संखिया पृथक् पृथक् पीस कर मिला ग्वारपाठा ( घीकुमारी ) के रस में दो दिन मर्दन कर सात कपड़मिट्टी की हुई आतशी - शीशी में भर कर बालुकायन्त्र में 2 दिन पकावें । स्वांग - शीतल होने पर शीशी को तोड़कर शीशी के गले में जमे हुए मल्लसिन्दूर को निकाल तीन दिन पत्थर के खरल में पीस , खूब महीन होने पर शीशी में भर लें ।
 - सि . भै . म . माला 

★नोट - मल्लसिन्दूर बनाने में बहुत सावधानी की आवश्यकता है । प्रारम्भ में कूपीस्थ द्रव्यों के पिघलने तक मन्द अग्नि दें , बाद में तेज अग्नि दें । लोहे की सलाई से बराबर शीशी के गले को साफ करते रहें । जब तक शीशी में गन्धक रहेगा ; तब तक सलाई में गन्धक पिघला हुआ काले रंग का देखने में आयेगा । करीब 10-12 घन्टे में इस गन्धक का जारण हो जाता है । फिर संखिया का धुआँ निकलने लगता है । इसी समय डाट लगा दें अन्यथा संखिया सब निकल जायेगा । गन्धक रहते हुए यदि डाट लगा दी जाती है तो गन्धक की गैस बन कर डाट को फेंक देती है या शीशी को तोड़ डालती है । अतः डाट सावधानी से लगावें । साथ ही संखिया के धुआँ से भी बचना चाहिए । मल्लसिन्दूर के लिये 36 घण्टे की आँच पर्याप्त है । यदि मल्लसिन्दूर के योग में पारद से चतुर्थांश #स्वर्ण #वर्क मिलाकर बनाया जाय , तो इससे अधिक गुणकारी मल्लचन्द्रोदय बन जाता है । हम स्वर्ण डालकर बनाते है। 

★मात्रा और अनुपान - आधी रत्ती से 1 रत्ती , दिन में दो बार शहद और अदरक के रस के साथ या रोगानुसार अनुपान से दें । 

★गुण और उपयोग -संखिया और कज्जली का यह रासायनिक कल्प अत्यन्त तीक्ष्ण और उष्णवीर्य है । 
पित्त प्रधान रोगों में और पित्त प्रकृति के पुरुषों को यह बहुत हल्की मात्रा में सौम्य औषध सितोपलादि चूर्ण, प्रवाल पिष्टी आदि के मिश्रण के साथ देना चाहिए और ठण्डा उपचार करना चाहिए । 
वात और कफ के विकारों में यह तीर की तरह शरीर में प्रवेश कर शीघ्र ही उत्तम फल दिखलाना है । जन्तुग्न गुण के कारण रक्त में घुसे हुए मलेरिया , हैजा , गरमी ( सिफलिस ) आदि के कीटाणुओं को जल्दी नष्ट करता है । यह रक्तवाहिकाओं में उत्तेजना पैदा करना है और हृदय की गति को बढ़ाता है । तेज बुखार में इसे नहीं देना चाहिए । आतशक के लिये तो इसे न्यूसल्वर्सन इन्जेक्शन ही समझें । आतशक या सूजाक के कारण होने वाले गठिया तथा अन्य उपद्रवों में भी बहुत शीघ्र लाभ देखा गया है । पक्षाघात , आमवात धनुष्टंकार आदि वात रोगों में और कफ - सम्बन्धी कास , श्वास , न्यूमोनिया , उरस्तोय , डब्बा आदि रोगों में आशातीत लाभ करता है । शीतांग और कफ प्रधान सन्निपात में यह अपूर्व प्रभाव दिखलाता है । स्त्रियों के हिस्टीरिया रोग में इसका बहुत जल्दी प्रभाव पड़ता है । एक सप्ताह में ही सब दौरे समाप्त हो जाते हैं । बुढ़ापे की दुर्बलता और पुराने दमे के रोग में मल्लसिन्दूर अमृत के समान गुण करता है । यह पाचक रस को पैदा करके भूख पैदा करता है और मूत्राशय तथा शुक्रप्रणालियों की कमजोरी को दूर करके रक्त उत्पन्न करता है । हस्तमैथुन से नामर्द हुए मनुष्य को इसे अवश्य सेवन करना चाहिए । हैजे और अजीर्ण जन्य दस्तों के विष को यह जल्दी नष्ट करता है । वात , कफजन्य प्रमेह में यह रसायन अच्छा गुण दिखलाता है । अतः केवल बल - वीर्य वृद्धि के लिये भी इसका सेवन किया जाता है । यह थोड़े ही दिनों में शरीर को पुष्ट बनाकर मैथुन शक्ति को बढ़ा देता है । इसको प्रवालपिष्टी जैसी सौम्य औषध के साथ मिलाकर खिलाने से ज्यादा गर्मी नहीं मालूम होती है । कफजन्य सन्निपात में मल्लसिन्दूर का प्रयोग किया जाता है । सन्निपात की प्रारम्भिक अवस्था में इसका प्रयोग करने से सन्निपात की शक्ति कम हो जाती है तथा रोगी भी विशेष परेशान नहीं होता । कफ प्रकोप के कारण कंठ में कफ भरा हुआ रहता हो , घर्र घर्र आवाज होती है , साथ ही थोड़ा कफ भी निकलता हो , अधखुले नेत्र , अक - बक बकना , तन्द्रा , बेहोशी , कभी - कभी निद्रा आ जाना , ज्वर की गर्मी भी ज्यादा न मालूम पड़े - ऐसी अवस्था में मल्लसिन्दूर मधु के साथ देने बहुत फायदा करता है । दूषित जलवायु या कफकारक पदार्थ का विशेष सेवन करने से कफ प्रकुपित हो छाती में संचित होने लगता है । कफसंचित होने से फुफ्फुस और वातवाहिनी नाड़ी कमजोर हो जाती है , जिससे कफ जल्दी बाहर नहीं निकल पाता । फुफ्फुस की कमजोरी के कारण खाँसने में भी कष्ट होता है । ऐसी हालत में मल्लसिन्दूर के प्रयोग से संचित कफ बाहर निकलने लगता है । मल्लसिन्दूर के साथ प्रवाल चन्द्रपुटी या अभ्रक तथा लौह भस्म आदि भी मिलाकर देने से बहुत फायदा होता है । न्यूमोनिया या इन्फ्लुएंजा आदि रोगों में जिनका असर खास कर फुफ्फस पर पड़ता है , ऐसे रोगों से मनुष्य जब ग्रस्त हो जाता है , तब फुफ्फुसों की कमजोरी के कारण श्वास लेने में भी कष्ट होता है और रोगी इतना कमजोर हो जाता है कि वह देर तक बातें भी नहीं कर सकता तथा उसका हृदय भी कमजोर हो जाता है । ऐसी दशा में मल्लसिन्दूर आधी रत्ती , मोती भस्म या पिष्टी 1 रत्ती , लौह भस्म 1 रत्ती- इन्हें मधु या पान के रस में मिलाकर देने से लाभ होता है । मलेरिया ( विषम ज्वर ) में मधु और तुलसी पत्ती के रस के साथ दें । आतशक और सूजाकजन्य वात विकारों में मंजिष्ठादि क्वाथ या सारिवादि हिम और मधु के साथ दें । पक्षाघात आदि विकारों में मल्लसिन्दूर आधी रत्ती मधु के साथ दें । ऊपर से महारास्नादि क्वाथ 5 तोला मधु मिलाकर पिला दें । प्रमेह और बहुमूत्र में मल्लसिन्दूर आधी रत्ती , बंग भस्म 1 रत्ती मधु के साथ दें । शुक्रक्षय में मल्लसिन्दूर आधी में रत्ती , छोटी इलायची चूर्ण 4 रत्ती 2 माशे मिश्री में मिला दूध के साथ दें । आतशक और उसके विकारों में मल्लसिन्दूर आधी रत्ती मधु में मिलाकर चटा दें । ऊपर से सारिवाद्यासव 2 तोला बराबर पानी मिलाकर देना चाहिए । न्यूमोनिया , इन्फ्लुएंजा आदि रोगों में श्रृंगभस्म या गोदन्ती भस्म में मिलाकर पान के रस और मधु के साथ दें ।
आ.सा.सं.ग्ं

यह पोस्ट आपकी जानकारी के लिए है। अनजान इसे न बनाएं। किसी सिद्ध हस्त अनुभवी वैद्य से प्राप्त करके उनके मार्गदर्शन में ही सेवन करें। 

#मल्लसिंदूर #mallsindhur #ayurveda #healthylifestyle #VaidAmanCheema #DrAmandeepSinghCheema #KohinoorAyurveda #स्वर्ण #gold 

आपका अपना शुभचिंतक
डाँ० अमनदीप सिंह चीमाँ वैद्य
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99151-36138

Saturday, August 20, 2022

*महाराजा तिला* लिंग मोटा , लंबा , ताकतवर बनाने के लिए

👉 *महाराजा तिला* 💪🏻
*पारा, आमलासार गंधक, हरताल,केसर,घुघची, संखिया, मीठा तेलिया 5-5 ग्राम , कुकतांड पीतता 10नग , दूध मदार 5 ग्राम , रेशम का कपड़ा, तिल तैल यथावश्यक। 

👉 *विधि तैयार करने की* ✍🏻

सब औष्धियों को तिल तैल में घोटकर मोठ के दाने के समान गोलियां बनाकर भलीभांति सुखालें। फिर उन गोलियों को आतशी शीशी में डालकर तैल निकाल लें। आगदान के तोबरे में लकड़ी के चूरे अथवा मीगनियों की आंच दें। फिर तैल को शीशी में डालकर भूमि के अन्दर दबा दें। अथवा प्रचंड धूप में घर की छत पर ध्यानपूर्वक रखें। जब गाढ़ा पन आ जाए तो समझें तैयार है। सुपारी, सीवन को छोड़कर मर्दन करें। बंगला पान या एरण्ड का कोमल पत्ता या पट्टी लपेट दिया करें। फिर प्रभु की लीला देखें। 

 *मंगवाने के लिए संपर्क कर सकते है।*
*आपका अपना शुभचिंतक*
*Vaid Aman Cheema*
*Whatsapp 9915136138*

Thursday, August 4, 2022

Brahm kamal ब्राह्म कमल

Brahm Kamal “ब्राह्म कमल” देवतों को चढ़ाया जाने वाला फूल 

Flower of Uttrakhand State  . उत्तराखण्ड के लोग इसे “ब्राह्म कमल” कहते है। इस के नाम के बारे काफी मतभेद है।

location Hemkunt Sahib ( Uttrakhand )

( मेरे द्वारा पहली बार 04-08-17 को  पोस्ट की गई ) 

ब्रह्म कमल ऊँचाई वाले क्षेत्रों का एक दुर्लभ पुष्प है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल को इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। ब्रह्म कमल एक रहस्यपूर्ण सफेद कमल है ,जो हिमालय में 11 हजार से 17 हजार फुट की ऊंचाइयों पर पाया जाता है।  उत्तराखंड में यह विशेषतौर पर पिण्डारी से लेकर चिफला, सप्तशृंग , रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक के आसपास के क्षेत्र में यह स्वाभाविक रूप से पाया जाता है।  केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में  ब्रह्म कमल चढ़ाने की परंपरा है।  

यह अत्यंत सुंदर  चमकते सितारे जैसा आकार लिए मादक सुगंध वाला पुष्प है। ब्रह्म कमल को हिमालयी फूलों का सम्राट भी कहा गया है। यह कमल आधी रात के बाद खिलता है इसलिए इसे खिलते देखना स्वप्न समान ही है।  एक विश्वास है कि अगर इसे खिलते समय देख कर कोई कामना की जाए तो अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। 

इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। राज्य पुष्प ब्रह्म कमल बदरीनाथ, रुद्रनाथ, केदारनाथ, कल्पेश्वर आदि ऊच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा। हिमालय क्षेत्र में इन दिनों जगह-जगह ब्रह्म कमल खिलने शुरु हो गए हैं। 

ब्रह्म कमल पुष्प के पीछे हुआ था भीम का गर्व चूर - जब द्रोपदी ने भीम से हिमालय क्षेत्र से ब्रह्म कमल लाने की जिद्द की तो भीम बदरीकाश्रम पहुंचे। लेकिन बदरीनाथ से तीन किमी पीछे हनुमान चट्टी में हनुमान जी ने भीम को आगे जाने से रोक दिया। हनुमान ने अपनी पूंछ को रास्ते में फैला दिया था। जिसे उठाने में भीम असमर्थ रहा। यहीं पर हनुमान ने भीम का गर्व चूर किया था। बाद में भीम हनुमान जी से आज्ञा लेकर ही बदरीकाश्रम से ब्रह्म कमल लेकर गए।

ब्रह्म कमल के औषधीय गुण - ससोरिया ओबिलाटा वानस्पतिक नाम वाला ब्रह्म कमल औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है। भोटिया जनजाति के लोग गांव में रोग-व्याधि न हो, इसके लिए इस पुष्प को घर के दरवाजों पर लटका देते हैं। इस फूल की विशेषता यह है कि जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है। गौर हो कि इस फूल का वानस्पतिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम है तथा इस फूल का प्रयोग जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है। ब्रह्म कमल न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही इसे बेचा जाता है। 

बस इसे उपहार स्वरूप ही प्राप्त किया जाता है, क्योंकि इसे देवताओं का प्रिय पुष्प माना गया है और इसमें जादुई प्रभाव भी होता है।  इस दुर्लभ पुष्प की प्राप्ति आसानी से नहीं होती। हिमालय में खिलने वाला यह पुष्प देवताओं के आशीर्वाद सरीखा है । यह साल में एक ही बार जुलाई-सितंबर के बीच खिलता है और एक ही रात रहता है। इसका खिलना देर रात आरंभ होता है तथा दस से ग्यारह बजे तक यह पूरा खिल जाता है। मध्य रात्रि से इसका बंद होना शुरू हो जाता है और सुबह तक यह मुरझा चुका होता है। इसकी सुगंध प्रिय होती है और इसकी पंखुडियों से टपका जल अमृत समान होता है। भाग्यशाली व्यक्ति ही इसे खिलते हुए देखते हैं और यह उन्हें सुख-समृद्धि से भर देता है। ब्रह्म कमल का खिलना एक अनोखी घटना है। 

यह अकेला ऐेसा कमल है जो रात में खिलता है और सुबह होते ही मुरझा जाता है। सुगंध आकार और रंग में यह अद्भुत है। भाग्योदय की सूचना देने वाला यह पुष्प पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है। जिस तरह बर्फ से ढका हिमालयी क्षेत्र देवताओं का निवास माना जाता है उसी तरह बर्फीले क्षेत्र में खिलने वाले इस फूल को भी देवपुष्प मान लिया गया है। नंदा अष्टमी के दिन देवता पर चढ़े ये फूल प्रसाद रूप में बांटे जाते हैं। मानसून के मौसम में जब यह ऊंचाइयों पर खिलता है  
तो स्थानीय लोग चरागाहों में जाकर इन्हें बोरों में भर कर लाते हैं और मंदिरों में देते हैं। मंदिर में यही फूल चढ़ाने के बाद प्रसाद रूप में वितरित किए जाते हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ के क्षेत्र में मौसम के दौरान पूरे वैभव और गरिमा के साथ इन्हें खिले हुए देखा जा सकता है। वनस्पति विज्ञानियों ने ब्रह्मकमल की 31 प्रजातियां दर्ज की हैं। कहा जाता है कि आम तौर पर फूल सूर्यास्त के बाद नहीं खिलते, पर ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है। धार्मिक मान्यता - ब्रह्म कमल अर्थात ब्रह्मा का कमल, यह फूल माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोडने के भी सख्त नियम होते हैं। जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।

नोट:- यह तस्वीर दिन में लिया गया है , लेकिन मान्यता अनुसार  रात को खिलता हे , यह भ्रम ही है।

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Wednesday, August 3, 2022

Gallstones ka ilaaz पित्त की पत्थरी

•पित्त की पत्थरी यानि पित्ताशय में पथरी होना •

गलत खान-पान , बदपरहेजी , अम्ल पित्त ज्यादा , ठंडे पदार्थ , फ्रिज की चीजें , तली चीजें , घी , तैल , मेदा बेकरी आदि चीजों के अतिसेवन से पित्त गाढ़ा होकर पित्ताशय में जम जाता है। जो हरे रंग का होता है। यह कोई पत्थर नही। लेकिन बोलचाल की भाषा में पित्ताशय की पत्थरी , गालस्टोन बोला जाता है। जैसे हर चमकती चीज सोना नही होती , वैसे ही हर पत्थर कहलाने वाली चीज पत्थर जैसी सख्त नही होती । पित्त की पत्थरी जब तक शरीर में है । नर्म रहती है। जब शरीर से बाहर आकर हवा के संपर्क में आती है तो सख्त हो जाती है। आयुर्वेद में बहुत ही कारगर दवाएं है जो इस जमे हुए पित्त को पिघलाकर मल के द्वारा गुदा बाहर से निकाल देती है। ऐसी भी औषधि है जो एक ही बार खाने से पत्थरी निकाल देती है लेकिन पहले वाले जमाने की तरह इतने होंसले वाले मरीज बहुत लाखों में एक मिलते है , आजकल ज्यादातर लोग बहुत नाजुक प्रकृति के है , जो जरा सा भी कष्ट सहन नही कर सकते । क्योंकि एक ही बार में पत्थरी निकालना रिसक वाला होता है। ऐसे में हम लोग ऐसी चिकित्सा किसी मरीज को नही देते। बहुत सी ऐसी आयुर्वेद में दवाएं है जो कि धीरे-धीरे पित्त को पिघलाकर गुदा मार्ग से निकाल देती है। समय लग जाता है। अगर सबर के साथ दवा खाई जाए तो कुछ महीनों में ही पत्थरी बिना दर्द निकल जाती है। दुबारा आने वाले समय में बनती भी नही है। किसी भी प्रकार के आप्रेशन की जरूरत नही होती। लोग पित्त की पत्थरी पर बहुत गुमराह करते है। कोई डाक्टर आप्रेशन बोलता है। तो कोई नोसिखा वैद्य गुर्दों की पत्थरी की दवा ही देता रहता है , जिसके कारण पत्थरी का साइज और बढ़ जाता है। रोगी आयुर्वेद को शक की नजर से देखने लगता है और आयुर्वेद से उसका विश्वास उठ जाता है। फिर वो आप्रेशन करवाकर पित्ताशय ही निकलवा लेता है। जिसके कारण सारी जिंदगी न ज्यादा गर्म चीजें , न ठंडी चीजें खा सकता है। आगे चलकर यह कैंसर बनने का खतरा बना रहता है। अकसर रोगी की कोशिश यही रहनी चाहिए कि वो अच्छे अनुभवी आयुर्वेद जानकर से अपनी केस हिस्ट्री , रिपोर्ट और अपनी डिटेल बताकर सलाह लेकर उसके बताएं नियम और समय अनुसार पूरे पथ्य- परहेज के साथ दवा खाएं तो पूर्ण तरीके से बिना आप्रेशन ठीक होकर अपने अंग को बचाकर कुदरत की अनमोल तोहफे में दी गई शरीर को तंदरुस्त रखकर बचा हुआ जीवन अपने परिवार के साथ खुशी से व्यतीत कर सकता है। अगर आप चाहे तो हमसे बना हुआ दवा पूरी डिटेल बताकर घर बैठे मंगवा सकते है। हर मरीज अनुसार दवा की मात्रा आदि हम अपने हिसाब से सैट करते है। 

आपकी सहूलियत के लिए पित्ताशय पत्थरी के कुछ नुस्खों में से यहां एक नुस्खा दे रहा हुं, बनाना तो कठिन है , लेकिन बहुत से पाठक फार्मूला की ज़िद करते है , उनकी जिज्ञासा शांति के लिए लिख रहा हुं । 

Gallstone Part :3
पित्ताशय अशमरी नाशक योग :3

•त्रिविक्रम रस 2ग्राम,
•अगसत सूतराज रस 8ग्राम
• सूतशेखर रस वृहत 15 ग्राम 
•स्वर्णमाक्षिक भस्म स्पैशल 
भृंगराज , वरना , वरुण में तैयार की हुई-6ग्राम
•अम्लपित्तांतक महायोग गोल्ड वाला-6ग्राम 

सबको मिलाकर 72 घंटे दृढ़ हाथों से खूब रगडाई करके गोली , कैप्सूल या पुड़िया तैयार कर लें। 

अनुपान :- गुनगुना पानी , पेठे का पानी , कुमारी आसव, बालम खीरा से

नोट:- एक माह में 5-15 mm तक पत्थरी पिघलकर निकल जाती है। जो multiple होती है। उनका समय नही बताया जा सकता कम होगी जल्द निकल जाएगी। अगर ज्यादा होगी तो समय लग सकता है। 

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वैद्य अमनदीप सिंह चीमाँ
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